ग्रामीण जीवन ही भारत की मूल प्राण वायु : मिथिलेशनन्दिनीशरण महाराज

सोनभद्र, 04 मार्च (हि.स.)। धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक विचारक व पीठाधीश्वर सिद्ध पीठ श्री हनुमन्निवास अयोध्या धाम के पूज्य संत आचार्य मिथिलेश नन्दिनीशरण का आगमन मंगलवार को सोनभद्र में हुआ। जहां ग्राम्य संस्कृति, समृद्धि एवं जीवनबोध गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि ग्रामीण जीवन ही भारत की मूल प्राण वायु है। ग्राम्य संस्कृति का अर्थ है जो हमें प्राप्त है उसके प्रति कृतज्ञ होना। ग्रामीण के वास्तविक संदर्भ को समझना होगा।

उन्हाेंने कहा कि ग्राम शब्द का अर्थ ही है बाजार से रहित व्यवस्था। बाजार ने व्यक्ति से मूल्य को छीनकर एक यांत्रिक व्यवस्था में स्थापित कर दिया है। जबकि ग्राम्य संस्कृति समानुभूति आधारित सहकारिता की संस्कृति है। जिसमें बिचौलिए के लिए कोई जगह नहीं है। आज आधुनिकता के दौड़ में नगरीय व्यवस्था में मनुष्य मूल्य रहित हो चुका है। हनुमत निवास के पीठाधीश्वर ने कहा कि ग्राम्य संस्कृति में ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिससे अपशिष्ट उत्पन्न हो। ग्रामीण संस्कृति हर चीज को पचाने में सक्षम है। ग्राम्य संस्कृति का जीवन बोध यही है कि हम अपने सुखों को कम करते हुए, एक समावेशी जीवन शैली के आधार पर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श भविष्य प्रदान करें। बाजार आधारित संस्कृति से इतर ग्राम्य संस्कृति औरजीवन बोध द्वारा भारत के मौलिक चेतना में वापस आना होगा। और यहाँ कार्य लोक से संवाद द्वारा व्यक्ति के स्तर पर करना होगा। इस माध्यम द्वारा ही भारत के संस्कृति एवं समृद्धि का संरक्षण होगा।

मिथिलेशनन्दिनीशरण महाराज ने कहा कि 60 से 70 करोड़ लोगों ने कष्ट सह कर स्नान करने महाकुम्भ पहुंचे। महाकुम्भ को सरकारी योजना कहना भारत के सनातन धर्मभाव का अपमान है। महाकुम्भ में इतने श्रद्धालुओं को पहुंचना, यह भारत के धार्मिक भावना का प्रतिफल है।

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हिन्दुस्थान समाचार / पीयूष त्रिपाठी

   

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