हमारी जन श्रुतियां, लोकोक्तियां और कथाएं इतिहास की मार्गदर्शिका: आचार्य प्रद्युम्न
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- Mar 12, 2025

- विक्रमोत्सव 2025 : अंतरराष्ट्रीय इतिहास समागम का समापन
उज्जैन, 12 मार्च (हि.स.)। हरिद्वार के आध्यात्मिक संत आचार्य प्रद्युम्न ने कहा कि इतिहास लेखन की परंपरा जितनी लिखित है, उतनी अलिखित भी है। जिसमें कि हमारी जन श्रुतियां, लोकोक्तियां और कथाएं इसकी मार्गदर्शिका है। लिखित इतिहास में ऋग्वेद को सर्वाधिक प्राचीन लिखित साहित्य का लिखित इतिहास का साक्षी है, जो हमें वेदों में विभिन्न आख्यान मिलते हैं, वह सभी कहीं न कहीं इतिहास से जुड़े हुए हैं, क्योंकि उनमें भूमंडल की बात है। उनमें स्थान विशेष के देवी-देवताओं या पूजा पद्धतियों की बात है। यह कहीं न कहीं इतिहास से जुड़ता है।
संत आचार्य प्रद्युम्न बुधवार को उज्जैन में विक्रमोत्सव अंतर्गत आयोजित अंतरराष्ट्रीय इतिहास समागम के समापन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन के लिए कर्म करो। कर्म निष्काम करो। कर्म धर्म से युक्त हो और जो कर्म धर्म से युक्त है, वह समाज के हितार्थ होता है। कर्मचारी समाज के हित में हो और अंत में यह धर्म से युक्त कर्म निष्काम कर्म में बदलना चाहिए। कर्म निष्काम होना चाहिए। समाज में एकता अखंडता और सामंजस्य लाना है तो उसके लिए प्रेम अत्यंत आवश्यक है। यह प्रेम निष्काम कर्म से ही लाया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय इतिहास समागम के समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. ईश्वरशरण विश्वकर्मा थे। डॉ. विश्वकर्मा ने सम्राट विक्रमादित्य संबंधी कथानक और भारतीय ज्ञान परंपरा जैसे विषयों पर सारगर्भित चर्चा करते हुए कहा कि इस तीन दिवसीय इतिहास समागम में महत्वपूर्ण मंथन हुआ है। अंतराष्ट्रीय इतिहास लेखन पर पढ़े गए पत्रों के माध्यम से क्षेत्रीय इतिहास का पुनर्लेखन एक महत्वपूर्ण विषय है। मालवा के इतिहास पर नए-नए तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत करेगा।
इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. अर्पण भारद्वाज ने कहा कि इतिहास केवल प्राचीन घटनाओं को नहीं बताता बल्कि वर्तमान पीढ़ी को भी नई सीख प्रदान करता है। उन्होंने शोधार्थियों का आह्वान किया कि वह इतिहास के पुनर्लेखन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
इस अवसर पर कार्य परिषद के वरिष्ठ सदस्य राजेश सिंह कुशवाहा ने शोधार्थियों को आह्वान किया की गंभीरता के साथ नवीन चुनौतियों को दृष्टिगत रखते हुए इतिहास का पुनर्लेखन करें। कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव अनिल शर्मा, कुलानुशासक डॉ. शैलेंद्र शर्मा, डॉ. मोहनलाल चराड, डॉ. किरण शर्मा आदि ने भी अपने विचार एवं शोध पत्रों का वाचन किया। संचालन डॉ. मुकेश शाह ने किया। आभार डॉ. रमण सोलंकी ने व्यक्त किया।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर