'पोटैटो ज़ीरो टिलेज विद राइस स्ट्रॉ मल्च तकनीक से फसल अधिक टिकाऊ होगी
- Admin Admin
- Jul 17, 2025

—सीजीआईएआर केंद्र से मिलकर भारत में टिकाऊ धान–आलू प्रणाली के लिए यंत्रीकरण को देंगे बढ़ावा
वाराणसी,17 जुलाई (हि.स.)। अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान- दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) और अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सिप) ने 'पोटैटो ज़ीरो टिलेज विद राइस स्ट्रॉ मल्च (पीजेडटीएम) तकनीक विकसित की है। इस तकनीक से चावल–आलू की फसल प्रणाली अधिक टिकाऊ, जलवायु-अनुकूल होगी। गुरूवार को इस तकनीक को लेकर एक संयुक्त बहु-हितधारक बैठक हुई। जिसमें नई मशीनरी नवाचार का मूल्यांकन किया गया। चर्चा के केंद्र में कॉम्बाइन हार्वेस्टर का एक नया प्रोटोटाइप था, जिसे ज़ीरो-टिल आलू-प्लांटर के साथ जोड़ा गया है। यह मशीन एक ही बार में धान की कटाई के बाद बचे भूसे को संभालते हुए उसी खेत में आलू की बुवाई कर सकती है। यह पहल कृषि प्रणाली-आधारित यंत्रीकरण की ज़रूरत को सामने लाती है, जो फसल विविधीकरण, जलवायु-अनुकूल खेती, फसल अवशेषों के उपयोग में मददगार होगी।
बैठक में अपर मुख्य सचिव (उद्यान) बी.एल. मीणा ने कहा कि ऐसे नवाचारों को राज्य की मौजूदा योजनाओं से जोड़कर बड़े स्तर पर लागू किए जाने की आवश्यकता है। निदेशक, आइसार्क डॉ सुधांशु सिंह ने कहा कि “उत्तर प्रदेश में अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सिप) के साउथ एशिया रीजनल सेंटर का होना एक अच्छा संकेत है। इससे दोनों संस्थानों के प्रयासों में तालमेल बढ़ेगा, जो राज्य की कृषि प्रणाली के लिए लाभकारी है। यह नई मशीन अगर लागू हो जाए तो पूर्वी भारत में चावल–आलू प्रणाली में समय की बचत, संसाधनों का संरक्षण और फसल चक्र में सुधार संभव हो पाएगा।”
कंट्री हेड, सिप डॉ. नीरज शर्मा ने कहा कि आलू की खेती में महिलाएं बड़ी भूमिका निभाती हैं और अब समय आ गया है कि कठिन श्रम को आसान और समयबद्ध बनाने के लिए यंत्रीकरण को बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने बताया कि पंजाब जैसे राज्य में पहले से अच्छी मशीनें हैं, लेकिन बिहार जैसे राज्य में अभी शुरुआत हो रही है। इसीलिए किसानों, मशीन कंपनियों और शोध संस्थानों के बीच सहयोग ज़रूरी है। बैठक में आइसार्क और सिप के वैज्ञानिकों के अलावा पेप्सिको, मैक्केन, यांमार, खालसा जैसी कृषि मशीनरी कंपनियों, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं, और कई राज्यों के किसानों ने भाग लिया।
—आगे की कार्ययोजना पर सहमति बनी
बैठक में तय हुआ कि मशीन के डिज़ाइन में फील्ड से मिले सुझावों के अनुसार सुधार किया जाएगा। पूर्वी और उत्तरी भारत के कुछ जिलों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू होंगे। परीक्षण के लिए सार्वजनिक, निजी और शोध संस्थानों की संयुक्त कार्य योजना तैयार की जाएगी। राज्यवार समूह-चर्चाओं के ज़रिए उत्तर प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में पायलट जिलों की पहचान की गई। फील्ड परीक्षण की समयसीमा को लेकर भी विचार-विमर्श हुआ, ताकि तय समय में इसका प्रयोग कर परिणामों का आकलन किया जा सके।
—तकनीक क्या है?
इस तकनीक के ज़रिए आलू की बुवाई धान की कटाई के बाद सीधे खेत में मौजूद भूसे का उपयोग कर की जा सकती है। यह भूसा खेत में प्राकृतिक मल्च का काम करता है और गहरी जुताई की ज़रूरत नहीं पड़ती। इससे मिट्टी की सेहत बेहतर होती है, नमी बनी रहती है, सिंचाई और खाद की ज़रूरत घटती है, और मज़दूरी का खर्च भी कम हो जाता है। सामान्यत: जब मशीन से धान की कटाई होती है, तब खेत में भूसा और ठूंठ रह जाते हैं, जो पारंपरिक तरीके से आलू लगाने में बाधा बनते हैं। यह नया प्रोटोटाइप इस समस्या को हल करता है, और धान की कटाई के तुरंत बाद ही उसी प्रक्रिया में आलू की बुवाई कर सकता है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी