धमतरी जिले में दलहन-तिलहन खेती की ओर बढ़ रहा किसानों का रूझान

धमतरी, 5 फ़रवरी (हि.स.)।धमतरी जिले में गर्मी में धान के बदले चना, सरसों, मूंग, अलसी, तोरिया, सूर्यमुखी जैसी दलहन-तिलहन फसलों की खेती ने किसानों की परम्परागत सोच में भारी बदलाव किया है। धान छोड़कर दलहन-तिलहन की खेती के फायदों को किसान अब अच्छी तरह से समझने लगे हैं। धमतरी फसल चक्र परिवर्तन से जल संरक्षण के रोल मॉडल के रूप में प्रदेश ही नहीं, देश में भी स्थापित हो रहा है। पिछले एक वर्ष में धमतरी जिले में गर्मी के धान के रकबे में एक साथ छह हजार 200 हेक्टेयर से अधिक की कमी आई है। धान की खेती में आई इस कमी से किसानों को पानी, बिजली, खाद, दवाई और मजदूरी मिलाकर खेती की लागत कम होने से लगभग दो हजार 641 करोड़ रुपये का फायदा कृषि विशेषज्ञों ने अनुमानित किया है।

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इस अभियान से किसानों को प्रत्यक्ष रूप से तत्काल कोई बड़ा आर्थिक लाभ भौतिक रूप से दिखाई तो नहीं देगा, परन्तु पानी बचाकर, जीवन बचाने के इस अभियान के परिणाम दूरगामी होंगे। अभियान के आगे बढ़ने के साथ-साथ इससे होने वाले बहुगामी फायदे भी सामने आएंगे। कृषि विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि धान के रकबे में 6,283 हेक्टेयर की कमी ने जिले में 7,539 करोड़ लीटर पानी बचाया है। यदि खेतों में सिंचाई के लिए पानी की कीमत 25 पैसे प्रति लीटर भी मानी जाए, तो किसानों के लगभग एक लाख 8 हजार 885 करोड़ रुपये केवल धान की जगह दलहन-तिलहन की फसल लगाने से ही बच गए हैं। धान की खेती में मजदूरी और खाद, दवाई आदि का खर्च भी दलहन-तिलहन की फसलों से लगभग दोगुना है। इस आधार पर भी किसानों ने लगभग तीन करोड़ रुपये की बचत कर ली है। ऐसा नहीं कि धमतरी जिले में गर्मी में धान की फसल नहीं लेने के फैसले को किसानों पर दबावपूर्वक थोपा गया हो। सकारात्मक सोच के साथ सटीक योजना बनाकर सबसे पहले किसानों को गर्मी में धान की फसल लेने से होने वाले नुकसान को बताया गया। आला अफसरों ने गांव-गांव जाकर सभाएं कीं और किसानों को गर्मी में धान की फसल लेने से होने वाले नुकसान की जानकारी दी।

जिला मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर ग्राम परसतराई के सरपंच परमानंद आडिल ने बताया कि दो साल पहले गांव में लगी गर्मी की धान की फसल अपने अंतिम चरण में पानी की कमी के कारण खराब हो गई। वाटर लेवल भी काफी नीचे चला गया। इस भयावह स्थिति को देखते हुए गांव में गर्मी की फसल नहीं लेने का सामूहिक निर्णय हुआ। प्रशासन ने इसके लिए ग्रामीणों की भरपूर मदद की। दलहनी-तिलहनी फसलों पर जोर दिया गया। किसानों ने गर्मी में धान की जगह पर अपने खेतों में दलहन-तिलहन की फसल लगाई और पानी के साथ-साथ खेती-किसानी की लागत कम होने से अच्छा लाभकमाया। परसतराई का यह माडल जल्द ही पूरे जिले में फैल गया। किसानों को एक फसल अवधि में बड़ा फायदा पहुंचाने, खेती को लाभ के व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के साथ-साथ जल संरक्षण और भूजल स्तर बढ़ाने में धमतरी माडल अब तेजी से जिले के अन्य किसानों के बीच भी लोकप्रिय होता जा रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा

   

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