वक्फ संशोधन विधेयक-2025 में सुधार कम, संशय ज्यादा है: अभिषेक मनु सिंघवी
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- Apr 03, 2025

नई दिल्ली, 3 अप्रैल (हि.स.)। राज्यसभा में गुरुवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक-2025 पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस बिल में सुधार कम और संशय ज़्यादा है। न्याय कम और पक्षपात ज़्यादा है। संविधान ने जो दिया, यह बिल वह छीनने की कोशिश कर रहा है। इसको संशोधन कम, साज़िश ज़्यादा कहा जाना चाहिए। जब क़ानून बराबरी का ना हो तो वह सत्ता की चालाकी बन जाता है। यह क़ानून नहीं, क़ानूनी भाषा में लिपटी हुई मनमानी है।
उन्होंने कहा कि बिल के क्लॉज 11 के तहत शत-प्रतिशत सदस्य प्रादेशिक वक़्फ़ बोर्ड के ऐसे व्यक्ति होंगे, जिनको प्रदेश सरकार नियुक्त या नामित करेगी यानी चुनाव नहीं होगा। ऐसे में धर्म और समुदाय को अपने वर्गों को चुनने का क्या अधिकार क्षेत्र बचा? वक़्फ़ बोर्ड में ग्यारह में से न्यूनतम सिर्फ़ तीन मुसलमान होने चाहिए। यानी 11 में से 8 ग़ैर मुसलमान हो सकते हैं। अनुच्छेद 26 का कौन सा स्वायत्तता का हक़ आपने समुदाय के साथ छोड़ा? जहां तक वक़्फ़ कौंसिल का सवाल है, ग़नीमत है कि 22 में से कम से कम 12 मुसलमान होने चाहिए। अनुच्छेद 25 और 26 अपने धर्म के लोगों को अपनी संस्थाएं ख़ुद चलाने का हक़ देता है। इस बिल के क्लॉज 14 द्वारा वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष को अविश्वास मत द्वारा हटाने का अधिकार अब हटा दिया गया है। ऐसे में क्या लोकतांत्रिक प्रक्रिया बची, क्या स्वायत्ता बची? बचा तो सिर्फ़ सरकारी नियंत्रण।
सिंघवी ने कहा कि पहले वक़्फ़ बोर्ड का सीईओ मुसलमान होना अनिवार्य था और दो व्यक्ति जिनके नाम बोर्ड देता, उनमें से एक को ही नियुक्त करना आवश्यक था। बिल का क्लॉज 15 यह सब हटा देता है। सब कुछ अब नॉमिनेशन के आधार पर होगा। उन्होंने विभिन्न राज्यों के छह धार्मिक स्थलों की संस्थाओं का जिक्र करते हुए कहा कि क्या इसमें से एक में भी आप उस समुदाय, उस धर्म के अलावा किसी और को कोई भी अधिकार क्षेत्र देने की हिम्मत कर सकते हैं?
सिंघवी ने एक शेर के साथ समापन किया- हमारी ख़ुद की छत भी छिनी जाती है हम से/ और कहते हैं कि वक़्त का तक़ाज़ा यही है/ जिस जगह सजदों के निशां थे/ आज वहां दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं!
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हिन्दुस्थान समाचार / दधिबल यादव