माजुली (असम), 16 अक्टूबर (हि.स.)। विश्व के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली जिले में लखी (लक्ष्मी) पूर्णिमा के साथ ही रासलीला और नाट्य मेला पर्व की शुरुआत हो गई है। वैष्ण संस्कृति का प्राण केंद्र माजुली के सभी सत्रों (मठो) और पचास से अधिक मंचों पर पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार आज के दिन से श्रीकृष्ण की रासलीला का आयोजन किया जा रहा है। आने वाले एक महीने तक माजुली का हर कोना गोकुल एवं वृंदावन में तब्दील हो जाएगा। हर जगह गूंजेंगी श्रीकृष्ण की महा रासलीला की धुनें।
शरद ऋतु माजुली के लिए एक विशेष समय होता है, क्योंकि यहां रासलीला के पर्व का समय है। इस वर्ष, लखी पूजा और काति महीने की पूर्णिमा तिथि पर रासलीला की शुरुआत ने पूरे माजुली को उत्सव के रंग में रंग दिया है। माजुली के गड़मूर सत्र के बंशीगोपाल प्रेक्षागृह में भी नाट्य मेला का शुभारंभ हो गया है। लगभग सौ वर्ष पहले, स्वतंत्रता सेनानी पिताम्बर देव गोस्वामी ने महिलाओं के लिए खुला मंच तैयार किया था, जिससे आज इस पवित्र रासलीला में महिलाओं की भागीदारी भी संभव हो सकी है।
माजुली के 26 से अधिक कलाकार, कारीगर और आयोजक इस महोत्सव में जुटे हुए हैं। माजुली के विभिन्न सत्र, जैसे कि ऐतिहासिक आउनीआटी दक्षिणपाट सत्र और उत्तर कमलाबाड़ी सत्र, शंकरदेव की अमर कृति 'केलिगोपाल' के आधार पर रास का आयोजन करेंगे। उत्तर कमलाबाड़ी सत्र ने भक्तों और दर्शकों के लिए भोजन की विशेष व्यवस्था भी की है।
अगले महीने तक माजुली के हर गांव में गीत, संगीत, ढोल और ताल की धुनों के साथ रासलीला का आयोजन होगा। 15, 16 और 17 नवंबर को रास उत्सव अपने चरम पर होगा, और तब तक माजुली पूरी तरह से इस धार्मिक उत्सव में डूबी रहेगी।
श्रीकृष्ण की रासलीला और लखी पूजा माजुली के लिए आज का दिन विशेष बना देती है।
हिन्दुस्थान समाचार / देबजानी पतिकर