आरक्षण व्यवस्था से भारतीय प्रतिभा का पलायन हो रहा है - पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

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जौनपुर,14 नवंबर (हि.स.)। देश की लगभग 20 प्रतिशत प्रतिभा हर साल विदेश चली जा रही है। आरक्षण की व्यवस्था से घबड़ा कर विदेश जाने वाले बच्चे वहां की व्यवस्था की ही बड़ाई करते हैं। आरक्षण की व्यवस्था में योग्य व्यक्ति को मौका न देकर अयोग्य व्यक्ति को योग्य होने का सर्टिफिकेट दिया जाता है।

उक्त बाते बीआरपी इंटर कॉलेज मैदान में चल रही श्री राम कथा में गुरुवार को भक्तों को संबोधित करते हुए पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने सुप्रसिद्ध समाजसेवी ज्ञान प्रकाश सिंह के पावन संकल्प से आयोजित सप्त दिवसीय रामकथा के पांचवे दिन व्यासपीठ से भगवान की वन प्रदेश की मंगल यात्रा से जुड़े प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था या अन्य सामाजिक व्यवस्था में आरक्षण की व्यवस्था प्रतिभा सम्पन्न बच्चों में रोग फैला रही है। पूज्य श्री ने कहा कि आजादी के बाद से ही देश के साधु संतों का अपमान होता आया है। पिछले एक दशक से यह स्थिति बदली है। भारत भूमि धर्म की भूमि है, तीर्थों की भूमि है, ऋषि मुनियों की भूमि है, धर्मशील आचरण करने वाले महापुरुषों की भूमि है, साधु संतों की भूमि है। राघवजी की कृपा से देश को धर्मशील प्रशासक मिला है तो सनातन धर्म की बाधा मिट रही है।

पूज्यश्री ने कहा कि राम और रावण की एक ही राशि थी। रावण ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था और भगवान राम क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। कुल तो रावण का श्रेष्ठ था लेकिन, जब हम दोनों के व्यवहार की बात करते हैं, आचरण की बात करते हैं, आहार और विहार की बात करते हैं तो राम जी हर मामले में रावण से श्रेष्ठ थे। राम जी और रावण दोनों शिवजी की पूजा करते हैं लेकिन एक की पूजा संसार के लोगों को संताप देने के लिए तो दूसरे की पूजा संसार को शांति प्रदान करने के लिए है।

समाज में आम लोग श्रेष्ठ के ही आचरण का अनुकरण और अनुसरण करते हैं ऐसे में सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने आचार, व्यवहार, आहार में श्रेष्ठता का प्रदर्शन करें, जिनका अनुकरण किया जा सके।

भारतीय सनातन संस्कृति में यह बार-बार प्रमाणित हुआ है कि जो भी व्यक्ति धर्म पथ पर चलते हुए संसार में विचरण करते हैं, उनके घर से दुख भी दूरी बना कर रहता है और ऐश्वर्य स्वयं चलकर उनके घर पहुंचते हैं।

पूज्यश्री नें कहा कि महर्षि बाल्मीकि की यह शिक्षा मनुष्य को हमेशा याद रखने की आवश्यकता है कि भगवत प्रसाद का रस अपने आप प्राप्त नहीं होता है। इसके लिए प्रयास करना ही पड़ता है। जिस मनुष्य को इस प्रसाद का रस लग जाता है उसकी सभी कर्मेंद्रियां अपने आप भगवान में लग जाती हैं। और ऐसे ही मनुष्य का जीवन धन्यता को प्राप्त होता है।

इस आयोजन के मुख्य यजमान ज्ञान प्रकाश सिंह जी ने सपरिवार व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।

हिन्दुस्थान समाचार / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव

   

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