भारतीय नागरिकता मिलने के बावजूद ‘मान्यता’ से वंचित, आज भी संघर्ष कर रहे हैं छिटमहल के लोग

कोलकाता, 4 जनवरी (हि.स.)।भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक छिटमहल समझौते के तहत भारतीय नागरिक बने लोग आज भी अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले के एक पुनर्वास शिविर में रह रहे अबू ताहेर ने बताया कि 2015 में भारतीय नागरिकता मिलने के बावजूद उन्हें और उनके जैसे अन्य लोगों को आजीविका के लिए बाहर जाने पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

ताहेर ने दिल्ली में प्रवासी मजदूर के रूप में काम करने के दौरान का अनुभव साझा करते हुए कहा कि आधार और वोटर आईडी जैसे सभी वैध दस्तावेज होने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने उनकी नागरिकता पर सवाल उठाए। उन्होंने बताया, “पुलिस ने मेरे माता-पिता के आधार कार्ड दिखाने की मांग की, जबकि वे बांग्लादेश में रहते हैं और वहां के नागरिक हैं।”

छिटमहल समझौते के तहत कूचबिहार जिले के 921 लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई थी। इनमें से अधिकांश लोग प्रवासी मजदूरी पर निर्भर हैं और काम के लिए दिल्ली जैसे शहरों का रुख करते हैं लेकिन पुलिस के कथित उत्पीड़न के कारण कई लोग पुनर्वास शिविरों में वापस लौटने को मजबूर हो रहे हैं।

छिटमहल आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता दीप्तिमान सेनगुप्ता का मानना है कि केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर इन लोगों की समस्याओं का समाधान करना चाहिए।

उन्होंने कहा, “इन नागरिकों को स्वतंत्र रूप से देश के किसी भी हिस्से में काम करने के लिए जिला प्रशासन को वर्क परमिट जारी करना चाहिए।”

उन्होंने छिटमहल निवासियों के लिए भूमि के दस्तावेज और अन्य प्रशासनिक मुद्दों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया। वे कहते हैं, “ये लोग पहले ही बहुत संघर्ष कर चुके हैं। अब वक्त आ गया है कि सरकारें मिलकर इन्हें स्थिर और सुरक्षित भविष्य प्रदान करें।”

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

   

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