देश में व्याप्त रुढ़ियों-कुरीतियों के विरुद्ध सर्वप्रथम शंखनाद महर्षि दयानन्द ने किया-राज्यपाल

देश में व्याप्त रुढ़ियों-कुरीतियों के विरुद्ध सर्वप्रथम शंखनाद महर्षि दयानन्द ने किया-राज्यपालदेश में व्याप्त रुढ़ियों-कुरीतियों के विरुद्ध सर्वप्रथम शंखनाद महर्षि दयानन्द ने किया-राज्यपालदेश में व्याप्त रुढ़ियों-कुरीतियों के विरुद्ध सर्वप्रथम शंखनाद महर्षि दयानन्द ने किया-राज्यपाल

-राज्यपाल ने परोपकारिणी सभा के गुरुकुल एवं गोशाला के लिये राज्य सरकार से 50 बीघा जमीन आवंटन का आश्वासन दिया

अजमेर, 19 अक्टूबर(हि.स)। महर्षि दयानन्द को श्रद्धांजलि प्रदान करने की सार्थकता तभी है जब हम महर्षि के चिन्तन के अनुसार आधुनिक भारत का निर्माण करें। उक्त विचार राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने शनिवार को महर्षि दयानन्द सरस्वती के द्विजन्मशताब्दी के अवसर पर आयोजित भव्य एवं दिव्य ऋषि मेले के अन्तर्गत व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि देश में व्याप्त रुढ़ियों-कुरीतियों के विरुद्ध सर्वप्रथम महर्षि दयानन्द ने ही शंखनाद किया था और अंधविश्वास तथा छुआछूत पर प्रहार किया था। प्रखर राष्ट्रभक्त ऋषि दयानन्द ने कहा था कि कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशी राज्य होता है, वही सर्वोत्तम होता है। ऋषि दयानन्द ने हमें स्वदेश, स्वभाषा, स्व-धर्म व स्व-संस्कृति पर गर्व करना सिखाया। सावरकर जी ने भी कहा था कि स्वराज्य के प्रथम उद्घोषक ऋषि दयानन्द ही थे। राज्यपाल ने कहा कि सुभाषचन्द्र बोस ने महर्षि दयानन्द को आधुनिक भारत का निर्माता बताया है।

अपने उद्बोधन में राज्यपाल ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने वेदज्ञान का प्रचार व समाज उपकार करने के लिए परोपकारिणी सभा का निर्माण किया था और उसे अपनी उत्तराधिकारिणी बनाया था। उन्होंने कहा कि भारत में जितना तत्त्वज्ञान था, उतना विश्व के किसी भी देश में नहीं था। बख्तयार खिलजी आदि आक्रांताओं ने हमारे नालन्दा आदि कई विश्वविद्यालयों और लाखों ग्रन्थों को जलाकर नष्ट किया था। बागड़े ने गुजरत के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की बात का समर्थन करते हुए कहा कि रसायन व विषयुक्त खेती से आज कैंसर और कई रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। अत: गो आधारित प्राकृतिक कृषि ही हितकारी है।

प्राचीन भारत के प्रत्येक गांव में गुरुकुल थे और सब स्त्री-पुरुषों को शिक्षा प्रदान की जाती थी। बाद में अंग्रेजों ने अंग्रेजी शिक्षा देने के नाम पर हजारों गुरुकुलों को ध्वस्त कर भारतीयों को शिक्षा से वंचित कर दिया। जिनका पुनरुत्थान महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज ने किया। राज्यपाल ने ऋषि उद्यान में चल रहे गुरुकुल व गोशाला के विस्तार के लिये राज्य सरकार से 50 बीघा जमीन आवंटन करवाने का आश्वासन दिया।

परोपकारिणी सभा के प्रधान ओम् मुनि ने स्वागत भाषण के दौरान कहा कि महर्षि दयानंद का कई बार अजमेर आगमन हुआ, जिसका शहर के वातावरण पर गहरा प्रभाव नजर आता है। आज हजारों आर्य समाज देश विदेश में वेद प्रचार का कार्य कर रहे हैं। देश को आर्य समाज का ऋण भूलना नहीं चाहिए। आर्य समाज की प्रेरणा से स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल शिक्षा प्रारंभ की जिसके परिणाम स्वरूप आज देश में अनेक गुरुकुल संचालित है और विद्यार्थी वैदिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने राज्यपाल से गऊ शाला के लिए 50 बीघा जमीन राज्य सरकार से स्वीकृत करवाने का निवेदन किया।

हरियाणा सूचना आयुक्त कुलवीर छिकारा ने कहा कि अनेक ऋषि हुए हैं, महर्षि हुए हैं लेकिन समाज सुधारक महर्षि दयानंद हुए हैं। उनका चिंतन, उनके सिद्धांत, इस मायने में विशेष रूप से मुझे अपील करते हैं कि उनकी चीज साधारण दिखते हुए भी बहुत असाधारण थी। उन्होंने सिर्फ यह कहा- हम सब ईश्वर की संतान हैं और जन्म के आधार पर कोई छोटा या कोई बड़ा होता ही नहीं है, उनका तो यह भी कहना था कि जन्म से तो सब ही शूद्र हैं और यह हमारा कर्म है जो हमें कहीं भी प्रतिस्थापित करता है। स्वतंत्रता के प्रथम उद्घोषक के रूप में स्वदेशी की धारणा को जितने प्रबल और प्रखर रूप से उन्होंने स्थापित किया इतना किसी और ने नहीं किया।

विधायक एवं पूर्व मंत्री अनिता भदेल ने कहा कि आर्य समाज और ऋषि दयानंद की शिक्षाओं के बारे में तो हम सब बखूबी जानते हैं कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज का कितना बड़ा योगदान रहा है। एक महिला होने के नाते से जब मंच पर खड़ी होकर के बोलने का जब मुझे अवसर मिलता है तो मैं ऋषि दयानंद को याद किए बगैर नहीं रहती, क्योंकि महिलाओं को समानता और सम्मान का दर्जा दिलाने का काम यदि किसी ऋषि ने अपने हाथों में लिया तो वे दयानंद सरस्वती जी थे। शिक्षा के क्षेत्र में चाहे तो महिलाओं को आगे बढ़ाने की बात हो या महिलाओं को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश दिलाने की बात हो। महिलाओं के जीवन को उन्नत बनाने और सामाजिक रूढ़ि़यों से मुक्ति दिलाने में ऋषि ने जो प्रयत्न किये उसे समाज भुला नहीं सकता।

राज्यपाल के ऋषि उद्यान आगमन पर ब्रह्मचारियों द्वारा वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ परोपकारिणी सभा के पदाधिकारियों ने उन्हें पुष्प गुच्छ भेट कर स्वागत किया। इसके उपरांत राज्यपाल ने ऋषि उद्यान गौ शाला की गायों को तिलक लगाकर अपने हाथों से गुड़ खिलाया। राज्यपाल ने सरस्वती भवन में महर्षि दयानंद सरस्वती के उपयोग में ली गई वस्तुओं तथा प्रिंटिंग प्रेस व अन्य हस्तलिखित ग्रंथों का अवलोकन किया। इसके उपरान्त राज्यपाल ने यज्ञशाला में वैदिक यज्ञ की आहुतियां दी। यज्ञ के ब्रह्मा कमलेश शास्त्री के सानिध्य में वेद मंत्रों के साथ ऋग्वेद के प्रथम मंत्र तथा अथर्ववेद के अंतिम मंत्र एवं वैदिक राष्ट्रीय प्रार्थना की भी आहुतियां दी। आर्यवीर दल के बैण्ड के साथ अगवानी की।

परोपकारिणी सभा के प्रधान ओममुनि, मंत्री कन्हैयालाल आर्य व स्वामी ओमानन्द सरस्वती ने राज्यपाल को साफा बांधा, शॉल ओढाकर कर स्मृति चिह्न भेंट किया। महाराष्ट्र से पधारे 100 वर्ष से अधिक आयु वाले स्वामी सोमानंद जी का भी अभिनंदन किया गया। श्रुति माला राठी ने मराठी में स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। मंत्री कन्हैयालाल आर्य ने आभार प्रदर्शन किया। कार्यक्रम का संचालन वेदप्रकाश विद्यार्थी ने किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष

   

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