दीपावली पर माटी के कतारबद्ध दीपक कराएंगे पुरातन संस्कृति का एहसास

कानपुर, 25 अक्टूबर (हि.स.)। शहर के बाजार इस समय एक से बढ़कर एक डिजाइनर लाइटों, झालरों और इलेक्ट्रानिक उत्पादाें से पूरी तरह से सजे हुए हैं। ये उत्पाद बदलते वक्त और उसकी बयार के चलते भले ही प्राचीन रीति-रिवाजों को पीछे छोड़ने पर आमादा हों लेकिन माटी के एक दीपक की जलती लौ के आगे सारे इलेक्ट्रानिक उपकरणों की चकाचौंध फीकी हो जाती है। इसको देखते हुए दीपावली का पर्व नजदीक आने पर इन दिनों कुम्हारों के चाक सरपट घूम रहे हैं और कतारबद्ध दीये अपनी पुरातन संस्कृति का एहसास कराएंगे।

दीपावली का पर्व नजदीक आ रहा है। शहरवासी घरों को सजाने के लिए बिजली बाजार की ओर रुख कर रहे हैं। हर व्यक्ति अपने घर को अलग तरह से सजाने को आतुर है और बाजार में नई तकनीक के लाइटों की मांग कर रहा है। बिजली बाजार भी रंग बिरंगी लाइटों से भरा पड़ा है। लोगों में दीपावली पर अपना घर बेहतर ढंग से सजाने के लिए जबरदस्त उमंग है। लोगों के उमंग और बढ़ती मांग को देखते हुए माना जा रहा है कि शहर का बिजली बाजार अबकी बार करीब 10 करोड़ रुपये पार कर जाएगा। इन सबके बीच ​माटी के दीपक की अनदेखी नहीं की जा सकती, क्योंकि माटी के दीपक के बिना दीपावली का त्योहार अधूरा रहेगा। भले ही शहर के हर छोटे-बड़े घरों के बाहर लटकती रंग-बिरंगी लाइटों की झालरें त्योहार की आभा में चार-चांद लगाने को तैयार है। माटी के दीपक के मुकाबले यह झालरें ठहर सकेंगी यह कहना थोडी अतिश्योक्ति होगी। दीपों के त्योहार में जब कतारबद्ध जलते दीयों की महफिल सजती है तो पुरातन संस्कृति का एहसास होता है। इसी को देखते हुए सभ्यता के उद्गम को विकास की पटरी पर सरपट दौड़ाने वाली कुम्हार की चाक की परंपरा आज भी कायम है। इन दिनों कुम्हारों के चाक सरपट घूम रहे हैं।

मांग में हुआ इजाफा

काकादेव स्थित कुम्हार मण्डी में रहने वाले कारीगर बड़ी ही उत्सुकता से दीपावली पर्व का इन्तजार करते हैं। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी दीपावली नजदीक आते ही कुम्हार दीया बनाने में व्यस्त हैं। इस पुरातन परंपरा के जीवित रहने के कारण ही कुम्हारों के आंगन में परंपरागत रूप से चाक पर दीया का निर्माण होता है। तीन पीढ़ियों से पुश्तैनी काम कर रहे जितेंद्र प्रजापति ने बताया कि देशहित और जागरूकता के कारण इस वर्ष चाइनीज झालर के साथ ही मिट्टी के दीयों की मांग भी उतनी ही तेज है। उन्होंने बताया कि उनका परिवार केवल दीपावली के लिए ही लगभग 30 हजार दीये बनाता था लेकिन इस बार मांग को देखते हुए 50 हजार दीये बनाने का लक्ष्य है। यह भी बताया कि यह सभी दीये पर्व के पहले ही बिक जाते हैं। अभी थोक में दीये 80 से 90 रुपये प्रति सैकड़ा की दर से दिए बेचे जा रहे हैं। वहीं दूसरे कुम्हार अभिषेक कुमार के अनुसार आने वाले एक दो दिनों में मिट्टी के दीयों के भाव बढ़कर 100 रुपये सैकड़ा के पार भी हो सकते हैं।

दीपक के आगे सब कुछ फीका

दीयों के खरीदार अंकित गुप्ता ने बताया कि घरों में बिजली के कितने भी उपकरणों का प्रयोग कर लिया जाए पर दीपावली में कतारबद्ध दीयों की लौ के आगे सब फीके ही हो जाते हैं और यह दिव्‍यलोक का अहसास भी करा जाते हैं। राजेन्द्र सिंह चौहान का कहना है कि बिजली के जरिये घर को कितना भी रोशन कर लो, दीपावली के त्योहार पर दीपक के बिना शुभ हो ही नहीं सकता। हमारा यह त्योहार सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है और दीपक के लौ से ही आस्था बढ़ती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / अजय सिंह

   

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