मधुपरमहंस जी महाराज ने भक्तों को बताया जीवन का सार
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- Oct 17, 2024
जम्मू, 17 अक्टूबर (हि.स.)। साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज राँजड़ी, जम्मू में अपने प्रवचनामृत को बिखेरते हुए कहा कि पाप कर्मों के कारण जिसका मन मलीन रहता है, उसको सपने में भी परमात्मा नजर नहीं आ सकता है। इसलिए आदमी जितने पाप करता जायेगा, उसकी बुद्धि उतनी मलिन होती जायेगी। आज गुरुआ लोग बहुत भीड़ लगाए हुए हैं। वो शिष्य को उचित अनुचित का ज्ञान नहीं देते। वेद में श्लोक है, जिसका मतलब है कि आहार शुद्ध होगा तो बुद्धि शुद्ध होगी। बुद्धि शुद्ध होगी तो ध्यान शुद्ध होगा। ध्यान शुद्ध होगा तो ज्ञान शुद्ध होगा। ज्ञान शुद्ध होगा तो मोक्ष शुद्ध होगा। वो शिष्यों को यह नहीं कहते हैं कि माँस नहीं खाना। जैसा जो अन्न खाता है, वैसा ही उसका मन होता है।
हमारा हिंदु धर्म महान है। हम किसी का भी मूल्यांकण उसके गुणों से करते हैं। फलाना आदमी गाँव में बहुत अच्छा है या फलाना आदमी बहुत खराब है, उससे ज्यादा व्यवहार नहीं करना। क्यों कहा। उसके गुणों के अनुसार। साहिब जी ने आगे कहा कि माँसाहार को यह धर्म घोर पाप मानता है। इस धर्म की एक मान्यता है कि ईश्वर है। दो सिद्धांत हैं-सत्य और अहिंसा। हमें सत्य और अहिंसा को ठीक से समझना होगा। आठ तरह का सत्य है। सत्य बोलना, सत्य आहार करना, सत्य ही संग करना, सत्य ही आचरण करना, सत्य ही सुनना, सत्य ही सोचना आदि।
उन्होंने कहा है शुद्ध जल है। अगर उसमें हानिकारक चीजें मिल गयीं तो वो अशुद्ध हो गया। इस तरह अहिंसा के भी आठ अंग हैं। मन, वचन, कर्म से किसी को भी दुख नहीं देना। ईर्ष्या नहीं रखना। बदले की भावना नहीं रखना। अगर कोई तुम्हें काटें दे रहा है, तुम फूल देना। उसको उसके कांटे मिलेंगे और तुझे तेरे फूल ही मिलेंगे। किसी से घृणा नहीं करना। किसी का बुरा नहीं चाहना। जिसका अंतःकऱण बुरे कर्मों में लिप्त नहीं होगा, वो शुद्ध हो जायेगा। जैसे रोशनी में सब कुछ दिख जाता है, ऐसे ही शुद्ध अंतःकरण में अन्दर के शत्रु दिख जायेंगे। इस धर्म का लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है। किसी धर्म में जन्म लेने से मनुष्य धर्मिष्ठ नहीं होता है। धर्म के नियमों का पालन करने से होता है।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा