एस. एन. बोस के ऐतिहासिक शोध कार्य के सौ वर्ष पूर्ण होने पर बीएचयू में विशेष व्याख्यान

— इसी शोध ने किया था बोस-आइंस्टीन स्टेटिसटिक्स का मार्ग प्रशस्त

वाराणसी, 21 अक्टूबर (हि.स.)। प्रोफेसर एस.एन. बोस के 1924 में प्रकाशित प्रसिद्ध शोध पत्र के सौ वर्ष के उपलक्ष्य में विज्ञान संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान में प्रो. उमाकांत रापोल ने वर्तमान विज्ञान पर बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी का प्रभाव को विस्तार से बताया।

उन्होंने बताया कि कैसे बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी ने हमारे क्वांटम प्रणालियों के ज्ञान को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया और इसके आधुनिक विज्ञान में अनुप्रयोगों को रेखांकित किया।

प्रो. रापोल ने जोर देकर कहा कि प्रयोगशालाओं में बीईसी की वास्तविकता ने क्वांटम सिमुलेशन, सटीक मापन और अति-संवेदनशील सेंसरों के विकास जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्रदान की हैं। उन्होंने बीईसी की क्वांटम जगत को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका को विस्तार से समझाया और कैसे यह तकनीकी और मौलिक भौतिकी के नए क्षेत्रों को प्रेरित करता रहा है। प्रो0 एस.एन. बोस के अंतिम पीएचडी छात्र प्रो. पार्थ घोष ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए। उन्होंने बोस के जीवन और योगदानों को याद किया और बताया कि क्वांटम सिद्धांत के विकास के पीछे का प्रयास किस प्रकार बोसोन स्थितियों को समझने का मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रो. घोष ने इस बात पर जोर दिया कि बोस के अग्रणी कार्यों के कारण बोस-आइंस्टीन संघनन के क्षेत्र में कई नोबेल पुरस्कार मिले हैं और यह कार्य क्वांटम भौतिकी के लिए एक आधारशिला बना हुआ है, विशेष रूप से क्वांटम संगणना और क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्रों में। प्रो. घोष ने बोस के फोटोन स्पिन और अभेद्यता की अवधारणा को बताया।

जो बोसोन जैसी क्वांटम कणों को समझने के लिए मौलिक है। उन्होंने साझा किया कि बोस के सिद्धांतों के व्यापक प्रभाव हैं, जिनमें बोस-आइंस्टीन सिद्धांतों का उपयोग करके गुरुत्वाकर्षण त्वरण की सटीक माप, जो सुरंगों की पहचान के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।

इसके पहले विज्ञान संकाय के डीन, प्रो. एस.एम. सिंह ने अतिथियों का स्वागत और संचालन डॉ. चंद्रशेखर पति त्रिपाठी ने किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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