मन ही बैरी, मन ही संगी: साहिब बंदगी के सद्गुरु का गूढ़ संदेश

मन ही बैरी, मन ही संगी: साहिब बंदगी के सद्गुरु का गूढ़ संदेश


जम्मू, 15 मार्च । साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज ने होली के अवसर पर राँजड़ी में अपने प्रवचनों से आगंतुक श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध करते हुए कहा कि अगर पूरे शरीर का मंथन करेंगे तो मन ही निकलेगा। शरीर का रोम रोम मन का आज्ञाकारी है। बहुत बड़ा आश्चर्य है। आत्मा की ताकत के बिना शरीर में एक रोम भी काम नहीं कर सकता है। आत्मा ने अपनी ताकत से अपने को खुद लपेट लिया है। अज्ञानवश। समस्त संसार धोखे में जी रहा है। आप यह ठीक से जानते हैं कि स्वप्न तो स्वप्न है। जीवनकाल में आपने कई सपने देखे। पर जागने पर सपने का अभीष्ट शून्य होता है। कुछ नहीं होता है। लेकिन उतनी देर तक वो सत्य लगता है। यह कोशिकाओं का खेल है। इंद्री मन है, रोम रोम मन है। पर सपना देखने वाला कभी भी सपने को स्वप्न नहीं मानता है। स्वप्न देखने वाला स्वप्न को नित्य मानता है। कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो। आखिर ऐसा क्यों। जागने पर हम कहते हैं कि सपना था। लेकिन जब सपना देख रहे हैं तो वो सच ही लग रहा है। चाहे वो पी.एच.डी. वाला देख रहा है, चाहे गंवार।

सभी जीवों में मन समान रूप से है। लेकिन चोले अलग अलग हैं। पूरी दुनिया ही स्वप्न है। कबीर साहिब ने जब ये बातें बोलीं तो लोगों ने कहा कि अनाप शनाप बोला। नहीं, तुमको समझ में नहीं आया। जगत ही भ्रम है। यह कोशिकाओं का पूरा खेल है। आप ड्रोन को देखते हैं हवा में उड़ते हुए। पर वो खुद नहीं उड़ रहा है। प्रयोगशाला में बैठा आदमी उसे चला रहा है। इस तरह पूरे शरीर का कर्ता मन है। मन जो चाहता है, वो करवाता है।

आपका मन से बड़ा कोई बैरी नहीं है। सब धोखा है। यह धोखा कोई बिरला ही समझ रहा है। साहिब कह रहे हैं कि कोई एक-दो हो तो उसको समझाऊँ, पर यहाँ पूरा संसार अँधा है। सबको पेट का धंधा लगा हुआ है।

   

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