विधानसभा में विश्वविद्यालयों की विधियां (संशोधन) बिल पारित, अब कुलपति कहलाएंगे कुलगुरु
- Admin Admin
- Mar 20, 2025

जयपुर, 20 मार्च (हि.स.)। राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को विश्वविद्यालयों की विधियां (संशोधन) बिल बहस के बाद पारित कर दिया गया। इस विधेयक के अनुसार, प्रदेश के सभी 32 सरकारी सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों में कुलपति का पदनाम अब 'कुलगुरु' और प्रतिकुलपति का नाम 'प्रतिकुलगुरु' होगा। यह परिवर्तन केवल हिंदी भाषा में लागू होगा, जबकि अंग्रेजी में पदनाम पूर्ववत रहेंगे। इससे पहले उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमचंद बैरवा ने बिल सदन में पेश किया।
बिल पर बहस के दौरान नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने राज्य में कुलपति नियुक्तियों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 32 विश्वविद्यालयों में से केवल चार के कुलपति राजस्थान के हैं, जबकि अधिकांश कुलपति उत्तर प्रदेश से हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मेडिकल यूनिवर्सिटी में महाराष्ट्र से एक गैर-चिकित्सक को कुलपति नियुक्त कर दिया गया है। जूली ने यह भी कहा कि कई विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को वेतन तक नहीं मिल रहा है और चार हजार से अधिक पद खाली पड़े हैं। उन्होंने तर्क दिया कि केवल नाम बदलने से शिक्षा व्यवस्था में कोई सुधार नहीं होगा, बल्कि उच्च शिक्षा में वैदिक और सनातनी मूल्यों को अपनाने की आवश्यकता है।
निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने कुलपति नियुक्तियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जो बड़ी अटैची लाता है, वही कुलपति बनता है और तीन साल में पैसा वसूलने की जुगत में रहता है। उन्होंने विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार और योग्यता की अनदेखी पर सवाल उठाए। भाटी ने कहा कि शिक्षा नीति और उच्च शिक्षा प्रणाली को बचाने की जरूरत है। युवाओं और शिक्षा नीति को पूरी तरह खत्म किया जा रहा है, जिसके गुनहगार यहां बैठे सभी 200 लोग हैं। उन्होंन सुझाव दिया कि मंत्री दौरे पर सर्किट हाउस की जगह विश्वविद्यालयों में रुकें। कुलगुरु के साथ विश्वविद्यालय को अपलिफ्ट करने पर बात करें और खाली पड़े प्रोफेसर के पदों को भरें।
कांग्रेस विधायक शिखा मील बराला ने राज्य की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जो लोग सक्षम हैं, वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं। उन्होंने छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध की आलोचना करते हुए इसे 'नेता बनाने की फैक्ट्री बंद करने' के समान बताया। उन्होंने यह भी कहा कि राजस्थान में 35 लाख से अधिक विद्यार्थी विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन बिना उचित गुरुजनों के उनका भविष्य कैसे उज्ज्वल होगा? उन्होंने कहा कि सरकार केवल कुलपति का नाम बदलने पर ध्यान दे रही है, जबकि उच्च शिक्षा में बुनियादी ढांचे को सुधारने की आवश्यकता है।
भाजपा विधायक गोपाल शर्मा ने उच्च शिक्षा में शोध की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से हर साल 421, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से 500 से अधिक रिसर्च पेपर प्रकाशित होते हैं, लेकिन हमारे विश्वविद्यालयों में शोध कार्य नगण्य हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में कभी आचार्य नरेंद्र देव और डॉक्टर संपूर्णानंद जैसे कुलपति हुआ करते थे, लेकिन अब योग्यता की अनदेखी कर राजनीतिक आधार पर नियुक्तियां की जा रही हैं। शर्मा ने आगे कहा कि विश्वविद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण छात्र और अभिभावक हताश हैं। उन्होंने एक घटना का जिक्र किया जिसमें एक छात्र की स्विमिंग पूल में डूबने से मृत्यु हो गई और कुलपति ने वहां जाकर संवेदना तक व्यक्त नहीं की। उन्होंने सरकार से विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों और प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की मांग की।
उच्च शिक्षा मंत्री ने इस विधेयक के समर्थन में कहा कि कुलपति का हिंदी में नाम 'कुलगुरु' करना भारतीय परंपरा और संस्कृति को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि यह बदलाव केवल भाषाई स्तर पर है और इससे विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
बहस के बाद सरकार ने विपक्ष की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए विधेयक को पारित कर दिया। हालांकि इस पर अभी भी विभिन्न राजनीतिक दलों और शिक्षाविदों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर