उत्तरकाशी की धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतिक है पंचकोसी वारुणी यात्रा

पांच कोस की परिक्रमा करने से तैतीस करोड़ देवी-देवताओं  के दर्शन का मिलता पुण्य

उत्तरकाशी, 27 मार्च (हि.स.)। उत्तरकाशी का प्राचीन नाम सौम्य काशी है, यह बनारस की तर्ज पर हर साल चैत्र माह की त्रयोदशी तिथि को पौराणिक पंचकोसी (वारुणी ) यात्रा का आयोजन किया जाता है। 15 किलोमीटर की पैदलयात्रा की शुरुआत वरुणा व गंगा के संगम स्नान से अस्सी और गंगा में स्नान पर संपन्न मानी जाती है।

इस यात्रा को पंचकोसी वारुणी यात्रा कहा जाता है। जो करीब 15 किमी की पैदल यात्रा होती है। माना जाता है कि इस यात्रा को करने वाले व्यक्ति को 33 कोटि देवी-देवताओं के पुण्य का लाभ मिलता है। उत्तरकाशी में गुरुवार को श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। वरुणा नदी में स्नान के साथ यह यात्रा शुरू हुई, जो वरुणावत पर्वत के ऊपर से गंगा और भागीरथी के संगम पर पहुंची। जहां पूजा और अर्चना के साथ वारुणी यात्रा संपन्न हुई। वरुणावत पर्वत की पैदल 15 किमी परिक्रमा वाली यात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए‌।

पंचकोसी वारुणी यात्रा करीब 15 किमी लंबी इस पदयात्रा के पथ पर बड़ेथी संगम स्थित वुरणेश्वर, बसूंगा में अखंडेश्वर, साल्ड में जगरनाथ और अष्टभुजा दुर्गा, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर और व्यास कुंड, वरुणावत पर्वत शीर्ष पर शिखरेश्वर और विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नर्वदेश्वर मंदिर में जलाभिषेक व पूजा अर्चना का सिलसिला शाम तक चलता रहा। वहीं, वरुणावत से उतर कर श्रद्धालुओं ने गंगोरी में अस्सी गंगा और भागीरथी के संगम पर स्नान किया साथ ही नगर में विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना एवं जलाभिषेक के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर यात्रा संपन्न की पंचकोसी वारुणी यात्रा में श्रद्धालुओं में भारी उत्साह दिखाई दिया।

वहीं पंडित सुरेश शास्त्री बताते हैं कि इस वर्ष यह यात्रा वारुणी योग में होगी। उन्होंने बताया कि यात्रा का उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड में किया गया है। केदारखंड में यह भी लिखा गया है कि वरुणावत पर्वत पर साक्षात शिव का वास है। वे यात्रा का महत्व बताते हुए कहते हैं कि जो वरुणावत की पांच कोस की परिक्रमा करता है, उसे तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के दर्शन का पुण्य मिलता है।

वरुणावत पर्वत पर स्थित विमलेश्वर महादेव के दर्शन करते श्रद्धालु।

हिन्दुस्थान समाचार / चिरंजीव सेमवाल

   

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