हिसार : पड़ोसी राज्यों में बढ़ी एचएयू मूंग की उन्नत किस्मों की मांग : प्रो. बीआर कम्बोज

हकृवि का मूंग की किस्मों को बढ़ावा देने के लिए प्राईवेट कम्पनी के साथ हुआ

समझौता

हिसार, 28 मई (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मूंग की उन्नत

किस्मों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। इसके लिए विश्वविद्यालय ने तकनीकी व्यवसायीकरण

को बढ़ावा देते हुए चामुंडा एग्रो प्राईवेट लिमिटेड, दिल्ली के साथ समझौता ज्ञापन पर

हस्ताक्षर किए हैं।

कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने बुधवार काे बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उन्नत किस्में

ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचे, इसके लिए चामुंडा एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली

के साथ समझौता (एमओयू) किया गया हैं। उपरोक्त समझौते के तहत विश्वविद्यालय द्वारा विकसित

मूंग की तीन किस्में एमएच 1142, एमएच 1762 तथा एमएच 1772 का बीज तैयार कर कंपनी किसानों

तक पहुंचाएगी ताकि उन्हें इन किस्मों का विश्वसनीय बीज मिल सकें और उनकी पैदावार में

इजाफा हो सके।

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. रमेश यादव ने बताया कि विश्वविद्यालय की ओर

से समझौता ज्ञापन पर अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने तथा चामुंडा एग्रो प्राइवेट

लिमिटेड, दिल्ली की तरफ से विकास तोमर, मार्केटिंग मनेजर ने हस्ताक्षर किए व उनके साथ

प्रवीण कुमार, सहायक उपस्थित रहे। उन्होंने बताया कि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने

के बाद अब कंपनी विश्वविद्यालय को लाइसेंस फीस अदा करेगी, जिसके तहत उसे बीज का उत्पादन

व विपणन करने का अधिकार प्राप्त होगा। इससे किसानों को भी इस उन्नत किस्म का बीज मिल

सकेगा।

अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि खरीफ मौसम में बोई जाने वाली

मूंग की एमएच 1142 किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम व उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों में

काश्त के लिए अनुमोदित किया गया है। इन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा,

दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल व असम राज्य शामिल हैं।

इस किस्म की फलियां काले रंग की होती हैं व बीज मध्यम आकार के हरे व चमकीले होते हैं।

इसका पौधा कम फैलावदार, सीधा एवं सीमित बढ़वार वाला है, जिससे इसकी कटाई आसान हो जाती

है। यह किस्म विभिन्न राज्यों में 63 से 70 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है और इसकी

औसत पैदावार भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 12 क्विंटल से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

तक आंकी गई है।

दलहन अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश यादव ने बताया कि एमएच 1762 एवं एमएच

1772 किस्में पीला मोज़ैक एवं अन्य रोगों की प्रतिरोधी है। एमएच 1762 किस्म बसंत एवं

ग्रीष्म काल में भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में बिजाई के लिए व एमएच

1772, खरीफ में भारत के उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में काश्त के लिए अनुमोदित की

गई है। एमएच 1762 लगभग 60 दिनों में एवं एमएच 1772 लगभग 67 दिनों में एक साथ पक कर

तैयार हो जाती हैं। इनके दाने चमकीले हरे रंग के मध्यम आकार के होते है। दोनों ही किस्में

सभी प्रचलित किस्मों से 10-15 प्रतिशत अधिक पैदावार देती है। औसत उपज क्रमश: 14.5 क्विंटल

तथा 13 .5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। नई किस्में बेहतर प्रबंधन से और भी अच्छे परिणाम

देती है व मूंग की अधिकतर बीमारियों के रोगरोधी है।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय की ओर से ओएसडी डॉ. अतुल ढींगड़ा, कुलसचिव डॉ. पवन

कुमार, स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता डॉ. केडी शर्मा, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय

के अधिष्ठाता डॉ राजेश गेरा, मीडिया एडवाइजर डॉ. संदीप आर्य, डॉ. रेणू मुंजाल, डॉ.

योगेश जिंदल, डॉ. अनुराग व डॉ. जितेन्द्र भाटिया, पौध प्रजनन विभागाध्यक्ष डॉ. गजराज

दहिया, डॉ. रविका व डॉ. उमा देवी व डॉ. अनुज राणा उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

   

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