सावरकर का जीवन पूर्ण, अनुकरणीय और राष्ट्रभक्ति की जीवंत मिसाल : मोहन भागवत
- Admin Admin
- Dec 12, 2025
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि वीर सावरकर आजादी की लड़ाई में जीवन समर्पित करने वाले देशभक्तों की आकाश गंगा में सबसे चमकते तारे हैं। उनका जीवन पूर्ण, अनुकरणीय और राष्ट्रभक्ति की जीवंत मिसाल है। हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए उनकी कल्पना के भारत के निर्माण के लिए काम करना होगा। सावरकर जैसे सूर्य न बन पाएं तो भी दीपक अवश्य बनें। यही उनको सच्ची श्रद्धांजली होगी। भागवत ने आशा व्यक्त की कि 2047 तक समृद्ध भारत के निर्माण की शुरुआत इसी भावना से होगी।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के गीत ‘सागरा प्राण तळमळला’ के 115 वर्ष पूर्ण होने पर अंडमान और निकोबार के श्री विजयपुरम में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इससे पहले दिन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वीर सावरकर की भव्य आदमकद प्रतिमा का अनावरण और ‘वीर सावरकर प्रेरणा पार्क’ का उद्घाटन किया।
कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा कि सावरकर के व्यक्तित्व की व्याख्या करने के लिए अनेक विशेषणों की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि उनका जीवन उत्कट समर्पण, प्रेम, त्याग और अदम्य साहस का अनूठा संगम था। उनके इन्हीं गुणों के कारण वे तनमय अवस्था में पहुंच गए थे जहां अपना दुख भूलकर व्यक्ति देश और समाज के दुख से जुड़ जाता है। इसे ही भक्ति कहा जाता है।
भागवत ने कहा कि सावरकर का स्मरण केवल इतिहास का पुन: आवाहन नहीं बल्कि सच्ची देशभक्ति को जगाने का माध्यम है। यदि हमें सावरकर के सपनों का भारत बनाना है, तो उनके समर्पण और अनुशासन को अपने जीवन में उतारना होगा। उन्होंने कहा कि सावरकर की इच्छाओं को पूरा करने का सामूहिक प्रयास पूरे राष्ट्र को करना चाहिए। आज की आवश्यकता गुलामी के कालखंड की तरह किसी (अंग्रेजों) के खिलाफ काम करने की नहीं बल्कि अपने राष्ट्र के लिए कार्य करने की है।
इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वीर सावरकर त्याग, समर्पण, निर्भीक राष्ट्रभक्ति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आधार स्तंभ थे। आज आवश्यकता देश के लिए जीने की है, सावरकर के सपनों का भारत बनाने की है।
शाह ने कहा कि सावरकर की महानता को किसी पुस्तक, कविता या फिल्म में पूरी तरह समेट पाना कठिन है, क्योंकि उनमें व्यक्तित्व, विचारधारा, कर्म, संघर्ष और सृजनशीलता का अद्वितीय संगम था। वे राइटर, फाइटर, देशभक्त, समाजसुधारक, कवि, भाषाशास्त्री और द्रष्टा थे।शं
उन्होंने कहा कि हिन्दी में 600 से अधिक नए शब्दों का सृजन किया जैसे ‘डायरेक्टर’ के स्थान पर ‘निर्देशक’। उन्होंने ही 1957 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वैचारिक नींव सावरकर ने रखी।
शाह ने कहा कि सच्ची वीरता भय की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि भय को पहचानकर उसे परास्त करने का साहस है, और सावरकर इसका सर्वोच्च उदाहरण थे। उन्होंने अस्पृश्यता, कुप्रथाओं और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध निर्भीक संघर्ष किया। अत्याचार सहने के बाद भी भारत माता की प्रार्थना करने का जो साहस सावरकर में था, वह उन्हें असाधारण देशभक्त बनाता है।
शाह ने जोर दिया कि आज देश के लिए मरने की नहीं, बल्कि देश के लिए जीने की आवश्यकता है, और सावरकर के सपनों का भारत उनके बताए मार्ग पर चलकर ही बनाया जा सकता है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा



