विश्व हिंदी दिवसः उत्कृष्ट रचनाओं का व्यापक स्तर पर दूसरी भाषाओं में अनुवाद की जरूरत

विश्व हिंदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम

विश्व हिंदी दिवस पर अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन 2025 का आयोजन

प्रवासी साहित्यकारों से संवाद, वैश्विक हिंदी चुनौती व संभावना विषय पर चर्चा

40 से अधिक देशों से आए हिंदी साधकों और साहित्यकारों का रहा समागम

नई दिल्ली, 11 जनवरी (हि.स.)। विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर 40 से अधिक देशों से आए हिंदी साधकों और साहित्यकारों ने `अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन 2025 में वैश्विक हिंदी चुनौतियां और संभावनाएं' विषय पर गहन चर्चा की। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अमेरिका से आए डॉ. धनंजय ने कहा कि हिंदी मनोविज्ञान और प्रकृति से जुड़ने की भाषा है। इस अवसर पर पद्मश्री प्रो. रोमियो मिजोकामी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि विदेशियों के लिए हिंदी पढ़ना आनंद का विषय है पर इसकी व्यापकता और व्यावहारिकता का आभाव है। उन्होंने कहा कि आप मेहनत करते रहें और हिंदी सीखते रहें।

वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी ने भारतीय भाषाओं के सन्दर्भ में कहा कि हम अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों की फोटोकॉपी नहीं है। क्या हम हिंदी का अखबार खरीदते और पढ़ते हैं? यूपी के पूर्व शिक्षा मंत्री और सांसद अशोक वाजपेई ने कहा कि हिंदी बड़ी बहन है और बाकी भाषाएं उनकी छोटी बहन हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि हिंदी को विश्व में लेकर जाना है तो एक दिवस मनाना चाहिए। अमेरिका, म्यांमार, सिंगापुर जैसे देशों से आए हिंदी प्रेमियों ने भी हिंदी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।

इस मौके पर राजदूत विनोद कुमार की अध्यक्षता, नीदरलैंड से बतौर विशिष्ट अतिथि रामा तक्षक, समाजसेवी सुभाष अग्रवाल और सिंगापुर से डॉ. विनोद दुबे मौजूद रहे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के समवेत सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में देश विदेश से आए हिंदी विषय पर काम करने वाले और हिंदी प्रेमी मौजूद रहे। शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। साथ ही अतिथियों का प्रतीक चिन्ह, अंगवस्त्र और पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया गया।

सत्र के शुभारंभ से पहले गिरमिटिया चित्र प्रदर्शनी में गिरमिटिया श्रमिकों के संघर्ष और इतिहास को दर्शाने वाली चित्रकला, साहित्य और पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। प्रदर्शनी में जहाजी भाई, अप्रवासी घाट और यादें जैसी कविताओं को रचने वाली दीप्ति अग्रवाल ने चित्रों के माध्यम से अपनी कलाकृति को प्रदर्शित किया। पुस्तक प्रदर्शनी में विभिन्न प्रकाशन, लेखक और शोधकर्ताओं की पुस्तकें प्रदर्शित की गई है।

इससे पहले भारतीय प्रवासी साहित्यकारों के अनुभवों और विश्वभर में हिंदी की वस्तुस्थिति पर संवाद स्थापित करने के लिए 'प्रवासी साहित्यकारों से संवाद' विषय पर अलग अलग देशों के साहित्यकारों ने बातचीत किया। साहित्य अकादमी में आयोजित इस कार्यक्रम में ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर जैसे देशों के हिंदी प्रवासी साहित्यकारों ने संवाद किया।

इस दौरान वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी ने विश्वभर में हिंदी से संबंधित अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि महज़ हिंदी ही नहीं अपितु भारत की कई भाषाएं वैश्विक हैं। साथ ही दक्षिण भारत के हिंदी साहित्यकारों का आभार प्रकट किया। म्यांमार से आए प्रवासी साहित्यकार चिंतामणि ने कहा कि हमें हिंदी साहित्य की उत्कृष्ट रचनाओं का दूसरी भाषाओं में अनुवाद हो, जिससे हिंदी का दायरा विस्तृत हो। प्रवासी लेखन भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। इसने भारतीय साहित्य की विविधता और गहराई को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने का कार्य किया है।

साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने हिंदी को वैश्विक स्तर प्रचारित करने के लिए अकादमी के कार्य और आगामी योजना को साझा किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं दिव्या माथुर ने कहा कि प्रवासी साहित्य आलोचना से वंचित हैं, जिससे हम अपने कार्यों का मूल्यांकन उचित ढंग से नहीं कर रहे। कार्यक्रम का संचालन जयशंकर यादव ने किया। इस मौके पर अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास और वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी ने प्रवासी साहित्यकारों को सम्मानित किया। यह तीन दिवसीय कार्यक्रम अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वैश्विक हिंदी परिवार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त प्रयास से आयोजित हो रहा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश

   

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