सांची के बौद्ध स्तूप की पवित्रता और ज्ञान देश-विदेश में विख्यातः केन्द्रीय मंत्री रिजिजू
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- Dec 01, 2024
- केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्री रिजिजू ने सांची में दो दिवसीय महाबोधी महोत्सव का किया शुभारंभ
रायसेन/भोपाल, 30 नवंबर (हि.स.)। भारत सरकार के अल्पसंख्यक तथा संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि मध्य प्रदेश के लोगों को इस बात का एहसास होगा कि वह कितने पवित्र स्थान के पास रहते हैं। सांची के बौद्ध स्तूप की पवित्रता और ज्ञान देश-विदेश में विख्यात है। पूरे विश्व में बौद्ध धर्म को मानने वालों के मन में यह इच्छा जरूर होती है कि वह अपने जीवनकाल में भारत दर्शन करें और सांची की पवित्र नगरी जरूर देखें।
केन्द्रीय मंत्री रिजिजू शनिवार देर शाम मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल सांची में 72वें महाबोधि महोत्सव को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी सांची के बुद्ध जम्बूदीप पार्क में आयोजित दो दिवसीय महाबोधी महोत्सव का दीप प्रज्जवलन कर शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर महाबोधि सोसायटी के चीफ वानगल उपतिस नायक थेरो, स्वास्थ्य राज्यमंत्री श्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल, जिला पंचायत अध्यक्ष श्री यशवंत मीणा, सांची विधायक डॉ प्रभुराम चौधरी भी उपस्थित रहे।
शांति और कल्याण के लिए भगवान बुद्ध के बताए मार्ग पर चलना होगाः रिजिजू
महोत्सव को संबोधित करते हुए केन्द्रीय मंत्री रिजिजू ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र में दुनिया को संदेश दिया कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया है। सम्राट अशोक के बाद दुनिया को इतना बड़ा संदेश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया है। इस दुनिया में समृद्धि और शांति के लिए भगवान बुद्ध की शरण में जाना होगा। भारत सरकार के नेतृत्व में वर्ष 2014 में बुद्ध जयंती को मनाने के लिए समिति ने निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि कोई भी देश अगर दुनिया में प्रभाव डालना चाहता है तो उसको भगवान बुद्ध के बताए शांति के मार्ग पर चलना होगा। दुनिया इस रास्ते पर चलकर ही खुशहाल और समृद्ध रहेगी। बुद्ध विहार और अन्य स्थलों को विकसित किया जाएगा।
केन्द्रीय मंत्री रिजिजू ने कहा कि भारत देश सामान्य देश नहीं है, यह सदियों से लोगों को शांति का संदेश देता आ रहा है। उन्होंने सांची महोत्सव का उल्लेख करते हुए कहा कि सांची महोत्सव मनाने की शुरूआत वर्ष 1952 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में हुई थी। तभी से यह महोत्सव मनाया जा रहा है। सांची में भगवान बुद्ध के दो महान अनुयायी सारिपुत्र और महामोदग्लायान, इनके अस्थि अवशेष हैं। भारत के पास परम्परा, आध्यात्म की विरासत है।
महाबोधि सोसायटी के चीफ वानगल उपतिस नायक थेरो, सांची विधायक डॉ प्रभुराम चौधरी ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर कलेक्टर अरविंद दुबे, पुलिस अधीक्षक पंकज पाण्डे भी उपस्थित रहे। बौद्ध कलाओं पर आधारित सांस्कृतिक प्रस्तुतियां महाबोधि महोत्सव के प्रथम दिवस प्रख्यात कलाकारों द्वारा बौद्ध कलाओं पर आधारित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां दी गईं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की पहली कड़ी में जापानी लोक नृत्य एवं गायन की प्रस्तुति दी गई। इसके उपरांत कृति थियेटर एण्ड स्पोर्ट अकादमी नागपुर के कलाकारों द्वारा भगवान बुद्ध की जीवन कथा पर केन्द्रित महानाट्य धम्मचक्र की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम की अगली कड़ी में भोपाल आकृति मेहरा एवं साथी द्वारा भक्ति संगीत की प्रस्तुति दी गई।
इससे पहले 72वें दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव में सबसे पहले महाबोधि सोसाइटी से शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा चैत्यगिरी बिहार मंदिर पहुंची। यात्रा में वियतनाम, श्रीलंका, जापान, सिंगापुर, अमेरिका से आए बौद्ध धर्म को मानने वाले अनुयायी शामिल हुए। महोत्सव में मध्यप्रदेश के मंत्री प्रहलाद पटेल भी शामिल हुए। चैत्यगिरी बिहार मंदिर के तलघर से जिला प्रशासन के अधिकारी और महाबोधि सोसाइटी के पदाधिकारी की मौजूदगी में ताला खोलकर भगवान गौतम बुद्ध के परम शिष्य सारीपुत्र और महामोदग्लायन की पवित्र अस्थियां निकाली गईं। उनकी विशेष पूजा अर्चना की गई। पूजा अर्चना के दौरान देश-विदेश के बौद्ध धर्म के श्रद्धालु मौजूद रहे।
कार्यक्रम में शामिल हुए विद्वानों ने भगवान बुद्ध के शांति के संदेश को जीवन में आत्मसात किए जाने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर श्रीलंका महाबोधि सोसायटी के चीफ, लंकाजी टेंपल जापान के मुख्य संघ नायक पूज्य बानगल उपतिस्स नायक थेरो और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अनुराधा शंकर भी मौजूद रहीं।
प्रदेश के पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल महाबोधि महोत्सव में पहले दिन शामिल हुए। उन्होंने अस्थि कलश की पूजा अर्चना में भाग लिया। महाबोधि सोसाइटी के चीफ बानगल उपतिस्स नायक थेरो साहित्य अन्य पदाधिकारी मंत्री पहलाद पटेल को चैतीगिरी बिहार मंदिर के तरघर में अंदर ले गए यह पूरी प्रक्रिया के बाद अस्थियों को को बाहर लाया गया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह मेला नहीं पवित्र दिन है, इस दिन भारत नहीं बल्कि बाहर के देशों के लोग आते हैं, उन स्मृतियों को भी एक बार याद करते हैं और पवित्र अस्थियों के दर्शन करने का मौका भी मिलता है। साल में यह अवसर एक बार आता है। अस्थि कलश थाईलैंड जाने को लेकर बोले कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी मै याद करूंगा जो जन भावनाएं होती है उनके द्वारा अस्ति कलश को बाहर पहुंच कर उन श्रद्धालुओं के मन को जो संतोष दिया है। यही परिवार का भाव है।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर