गायत्री प्रज्ञा पीठ पिहानी में सर्वपितृ अमावस्या में हुए सामूहिक श्राद्ध संस्कार

हरदोई, 02 अक्टूबर (हि.स.) । गायत्री गायत्री प्रज्ञा पीठ पिहानी में बुद्धवार को सर्वपितृ अमावस्या को नि:शुल्क सामूहिक तर्पण संस्कार कराया गया। हालांकि तर्पण श्राद्ध पक्ष में सामूहिक प्रतिदिन चला रहा। सर्व पितृ अमावस्या को तर्पण व श्राद्ध का कार्यक्रम संपन्न हुआ। विसर्जन व तर्पण का कार्यक्रम कुल्लही शारदा नहर में संपन्न कराया गया।श्रद्धालुओं ने अपने पितरों को याद करते हुए जलांजलि अर्पित की।

इस मौके पर देवेंद्र मिश्रा ने कहा कि मनुष्य की मृत्यु के बाद भी उसकी आत्मा मरती नहीं है। उसका अपना अस्तित्व रहता है। आत्मा अमर, अजर, सत्य और शाश्वत है। उन्होंने कहा कि जब जीवात्मा एक जन्म पूरा करके अपने दूसरे जीवन की ओर उन्मुख होती है, तब जीव की उस स्थिति को भी एक विशेष संस्कार के माध्यम से बांधा जाता है, जिसे मरणोत्तर संस्कार या श्राद्ध कर्म कहा जाता है। आश्विन कृष्णपक्ष में प्रतिपदा से लेकर पितृ विसर्जनी अमावस्या तक सूर्य रश्मियों की प्रधानता होती है। रश्मियों के साथ ही पितृगण पृथ्वी पर अवतरित होते है। उन्हीं के लिए पितृपक्ष पर्यांत तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। पितृपक्ष में यदि कोई व्यक्ति तिथि पर पार्वण श्राद्ध न कर पाया हो या तिथि ज्ञात न हो तो पितृविसर्जनी अमावस्या पर किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि पितरों के साथ ही आठ वसु, नवग्रह ब्राहमण, रुद्र, अग्नि, विश्वेदेव, मनुष्य और पशु-पक्षी भी संतुष्ट होते हैं। नीच ग्रह भी मनोवांछित फल देने लगते हैं। ज्योतिषशास्त्र में श्राद्धकर्म का विशेष महत्व है। जो लोग जाने-अनजाने, भूलवश अपने पितरों का तर्पण श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृगण श्राप देते हैं। पितृदोष के रूप में अकाल मृत्यु होना, भाग्योदय न होना, विवाह में विलंब, संतान न होना, खून की कमी, अनेका बाधाओं से छुटकारा नहीं मिल पाता है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण एवं उन्हें अर्घ्य, पिंडदान देने से पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। अगर किसी कारणवश श्राद्ध न कर सके तो केवल ब्राह्मण को भोजन करा देने से ही श्राद्ध हो जाता है। अगर ब्राह्मण के भोजन की व्यवस्था न बन सके तो व्यक्ति को घास काटकर पितरों के नाम पर गाय को खिलाने पर श्राद्ध हो जाता है। घास न मिल सके तो दोनों भुजाओं को उठाकर पितरों की प्रार्थना करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध कर्म मध्याह्न काल में ही करना चाहिए। इसी समय पितरों का आगमन होता है। श्राद्ध कर्म योग्य ब्राह्मण से कराने पर ही पितरों को शांति प्राप्त होती हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / अंबरीश कुमार सक्सेना

   

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