शारदीय नवरात्र : तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा के दरबार में उमड़े श्रद्धालु

—मंदिर से लक्खी चौतरा तक श्रद्धालुओं की लगी कतार

वाराणसी, 05 अक्टूबर (हि.स.)। शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन शनिवार को श्रद्धालुओं ने आदि शक्ति के तीसरे स्वरूप माता चंद्रघंटा के दरबार में हाजिरी लगाई। चौक चित्रघंटा गली स्थित माता रानी के दरबार में भोर से ही श्रद्धालु पहुंचने लगे। मंदिर के गर्भगृह में माता रानी के दर्शन के लिए लक्खी चौतरा तक लाइन लगी रही। कतारबद्ध श्रद्धालुओं ने अपनी बारी आने पर पूरे श्रद्धाभाव से माता के दर पर नारियल चुनरी चढ़ाकर मत्था टेका। भगवती से परिवार में सुख शान्ति और वंशबृद्धि की कामना की। इस दौरान पूरा मंदिर परिक्षेत्र सांचे दरबार की जय,जय माता दी के जयकारों से गुंजायमान रहा।

इसके पूर्व भोर में माता रानी के विग्रह को महंत की देखरेख में पंचामृत स्नान कराने के बाद नवीन वस्त्र धारण कराया गया। इसके बाद विग्रह का श्रृंगार रचाया गया। भोग लगा मंगला आरती कर मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। माता रानी का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा बेहद सौम्य है। मां के दर्शन मात्र से अभीष्ट सिद्धि और सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इनके सिर में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण मां को चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी 10 भुजाएं हैं। इनमें खड्ग, बाण, गदा आदि अस्त्र हैं। इनके घंटे की भयानक ध्वनि से असुर भयभीत रहते हैं। इस स्वरूप की आराधना से साधक का मन-मणिपुर चक्र में प्रवष्टि होता है। मां चंद्रघंटा तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं और ज्योतिष में इनका संबंध मंगल ग्रह से होता है। जब असुरों के बढ़ते प्रभाव से देवता त्रस्त हो गये तब उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए आदिशक्ति चंद्रघंटा रूप में अवतरित हुई। असुरों का संहार कर देवी ने देवताओं को संकट से मुक्त कराया। जिनके घंटे की घनघोर ध्वनि से दसों दिशाएं कंपायमान हो उठी थीं। देवी के इस स्वरुप के स्तवन मात्र से ही मनुष्य भय से मुक्ति व शक्ति प्राप्त करता है। इस स्वरूप का पूजन सभी संकटों से मुक्त करता है।

——चौथे दिन कुष्मांडा देवी के दर्शन् पूजन का विधान

शारदीय नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाकुंड स्थित कुष्मांडा के दर्शन पूजन का विधान है। माता का दरबार दुर्गाकुंड में अवस्थित है। आदिशक्ति के इस स्वरूप के दर्शन-पूजन से जीवन की सारी भव बाधा और दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है। माँ की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। मां कुष्माण्डा विश्व की पालनकर्ता के रूप में भी जानी जाती हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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