शेख अब्दुल्ला के पास विलय पर निर्णय लेने का नहीं था कोई अधिकार : भाजपा

जम्मू, 9 जनवरी (हि.स.)। पूर्व एमएलसी और जेके यूटी भाजपा के प्रवक्ता गिरधारी लाल रैना ने जम्मू कश्मीर को शेष भारत में शामिल करने के संबंध में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के बयान को इतिहास से छेड़छाड़ और तथ्यों की गलत बयानी करार दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि शेख अब्दुल्ला कोई नहीं थे और उन्हें 1947 में विलय के बारे में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं था। नेशनल कॉन्फ्रेंस और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला महाराजा हरि सिंह के साथ नहीं थे।

जीएल रैना ने याद किया कि इसके विपरीत उन्होंने मई 1946 में रियासत के तत्कालीन शासक के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। राज्य प्रशासन ने शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया और उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया। रैना ने आगे कहा, यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू ने भी अब्दुल्ला के समर्थन में कश्मीर जाने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा।

पूर्व एमएलसी ने जोर देकर कहा कि नेहरू और शेख अब्दुल्ला की जोड़ी ने सुचारू विलय प्रक्रिया के लिए यथासंभव बाधाएं पैदा कीं। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जनवरी 1947 में राज्य की विधान सभा के लिए हुए चुनावों का बहिष्कार किया। यहां तक कि कश्मीर में ब्रिटिश रेजिडेंट ने भी कांग्रेस पार्टी के एक वर्ग द्वारा प्रदर्शित विरोधी भावना के कारण महाराजा हरि सिंह की बेचैनी देखी। रैना ने बताया कि वास्तव में महाराजा ने पंजाब के व्यवसायी राय बहादुर गोपाल दास को कांग्रेसियों द्वारा दुर्व्यवहार की आशंका व्यक्त की थी, जिन्होंने इसे वल्लभभाई पटेल को बताया था।

उन्होंने आगे कहा कि जुलाई 1947 में वल्लभभाई पटेल ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपनी दुर्भावना की आशंका को दूर करने के लिए महाराजा को पत्र लिखा था। पटेल ने महाराजा को चर्चा के लिए दिल्ली आने के लिए प्रोत्साहित किया। शेख अब्दुल्ला को प्रशासन में शामिल करने के नेहरू के आग्रह के कारण विलय में और देरी हुई। ऐतिहासिक तथ्य यह है कि जम्मू-कश्मीर शेख अब्दुल्ला के कारण नहीं, बल्कि इसके बावजूद भारतीय संघ में शामिल हुआ।

इसी तरह फारूक अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर पुनर्वास कानून 1982 के मुद्दे पर गुमराह कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य 1 मार्च, 1947 और 14 मई 1954 के बीच पाकिस्तान चले गए स्थायी निवासियों और उनके वंशजों के संदर्भ में राज्य में पुनर्वास (या स्थायी वापसी) के लिए परमिट देना है। रैना ने याद दिलाया कि यह तत्कालीन सरकार और नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी द्वारा बनाया गया एक शुद्ध सांप्रदायिक और विध्वंसक कानून था, जिसने दशकों से जम्मू कश्मीर में रहने वाले वाल्मिकियों, गोरखाओं और पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित कर दिया था। जीएल रैना ने लोगों को नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा इतिहास को विकृत करने और अपने बयानों और कार्यों से स्थिति को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश करने के प्रति आगाह किया।

हिन्दुस्थान समाचार/राहुल/बलवान

   

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