दांतण हेला हुआ, गुरुवार को निकलेगी गणगौर की सवारी

उदयपुर, 10 अप्रैल (हि.स.)। पति की दीर्घायु की कामना से किया जाने वाला गणगौर माता का व्रतानुष्ठान चैत्र शुक्ल तृतीया अर्थात 11 अप्रैल को उत्सव का रूप लेगा। उदयपुर शहर की पिछोला झील का गणगौर घाट गुरुवार को अपने नाम को साकार करेगा। विभिन्न समाजों की सजी-धजी गणगौर और ईसरजी को लाव-लश्कर, गाजे-बाजों के साथ गणगौर घाट तक लाया जाएगा और वहां जलकुसुम्बे देकर पूजा-अर्चना के बाद इस पूजा के तहत 16 दिन से चल रहे व्रत को पूर्ण करने का क्रम होगा। इससे पहले, बुधवार को गणगौर-ईसरजी की प्रतिमाओं को नख से शिख तक शृंगारित किया गया।

मेवाड़ में परम्परागत रूप से हो रही गणगौर की पूजा होली के साथ ही शुरू हो जाती है। होली के बाद बड़े सवेरे ही गाती-बजाती स्त्रियां होली की राख अपने घर ले जाती है, उसे मिट्टी के साथ गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाती है, दीवार पर सोलह बिंदियां कुमकुम की, सोलह बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की प्रतिदिन लगाती हैं। कुंकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही शृंगार की वस्तुएं हैं, सुहाग का प्रतीक। शंकर को पूजती कुंआरी कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं। मां पार्वती की स्तुति का सिलसिला होली से ही शुरू है और 16 दिन तक चलता है। इस दौरान पारम्परिक गीत, भंवर म्हाने पूजण दो गिणगौर के गायन के साथ नृत्य किया जाता है।

जानकार वसीटा समाज के कार्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र हिलोरिया के अनुसार उदयपुर में राज माली भोई समाज, कहार भोई समाज, खटीक समाज, पूर्बिया कलाल समाज, डाकोत समाज, वसीटा समाज, क्षत्रिय जीनगर समाज, मारू कुमावत समाज, सालवी समाज सहित अन्य समाज गणगौर की भव्य सवारी निकालते हैं और गणगौर घाट पर जाकर पूजन किया जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता/ईश्वर

   

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