15 वर्षों तक विधायक रहे सुरेन्द्र दत्त बाजपेई हारे थे लोकसभा

-इंदिरा गांधी ने जब भेजा राज्यसभा का टिकट तो फाड़कर फेंक दिया

-इन्दिरा से नाराज सुरेन्द्र दत्त बाजपेई को मनाने आये थे मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत

हमीरपुर, 02 मई (हि.स.)। हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में आजादी के बाद सुरेन्द्र दत्त बाजपेई लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव में शानदार वोटों से निर्वाचित हुये, लेकिन उनकी तमन्ना सांसद बनने की अधूरी रह गयी। इसके बावजूद उनकी ईमानदारी पर देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.इन्दिरा गांधी को भी नाज था। वह एक मामले में इन्दिरा गांधी से नाराज हो गये थे, जिस पर उन्हें मनाने के लिये प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत के हाथों राज्यसभा का टिकट भिजवाया गया,जिसे वहीं पर फाड़कर फेंक दिया था। वह जीवन भर इन्दिरा गांधी से नाराज रहे।

वीर भूमि बुन्देलखण्ड के हमीरपुर जिले में राजनीति की विसात पर ईमानदारी के लिये विख्यात सुरेन्द्र दत्त बाजपेई जैसे नेता को प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने जब लखनऊ में 10 बीघे में बना बंगला और नैनीताल की 100 एकड़ जमीन दे दी थी तब यह पूरी सम्पत्ति सुरेन्द्र दत्त बाजपेई ने राष्ट्र के नाम पर दान कर दिया था। वह जीवन भर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और विधायकी का पेंशन तक नहीं लिए थे।

सुरेन्द्र दत्त बाजपेई ने अपने पौत्र अवधेश के बीटीसी प्रशिक्षण के लिये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का आश्रित प्रमाणपत्र मांगने पर इंकार किया था। उन्होंने पौत्र को फटकारते हुये कहा था कि अपने बलबूते ही पढ़ाई कर आगे बढ़ो। उनकी यह बातें सुनकर परिवार वाले दुखी हुये थे।

उन्नाव से हमीरपुर जिले में बसे थे बाजपेई

सुरेन्द्र दत्त बाजपेई उन्नाव जिले के दरौली गांव के रहने वाले थे। उनका जन्म 1912 में हुआ था। उनके पिता पं.बल्लभ प्रसाद बाजपेई थे। पिता प्राथमिक विद्यालय में हेडमास्टर थे। उनका तब सुरेन्द्र दत्त की परवरिश भाई ने की। माता पिता का सिर से साया उठने के बाद चचेरे भाई रामगोपाल बाजपेई ने सुरेन्द्र दत्त बाजपेई को पढ़ाकर उन्हें ईमानदारी से जीवन जीना सिखाया था। बताते हैं कि रामगोपाल बाजपेई रिश्ते में चन्द्रशेखर आजाद के भांजे थे जिससे बचपन में ही सुरेन्द्र दत्त आजादी की जंग में कूद पड़े थे। अंग्रेजों से लोहा लेने पर उन्नाव के दरौली में उनका घर ढहाया गया, तब रामगोपाल सुरेन्द्र दत्त को लेकर अपनी ससुराल सुमेरपुर आये थे। सुमेरपुर में बसने के बाद भी अंग्रेजों से जंग में यहां भी जूनियर हाईस्कूल के पास बना मकान अंग्रेजी फौज ने ढहा दिया था।

शीर्ष राजनीति में बाजपेई की थी अच्छी पैठ

1952 में विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस से सुरेन्द्र दत्त बाजपेई ने चुनाव लड़ा था, जिसमें 8860 वोट पाकर शिवनाथ सिंह को हराया था। वर्ष 1957 के विधानसभा के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ते हुये उदित नारायण शर्मा को हराया। उन्हें 16863 वोट मिले थे। वर्ष 1962 के विधानसभा चुनाव में तीसरी बार विधायक बने, जिसमें उन्हें 21226 वोट मिले थे। उनके सामने सोसलिस्ट पार्टी आगे नहीं बढ़ सकी। वर्ष 1967 के विधानसभा के चुनाव में सुरेन्द्र दत्त बाजपेई जनसंघ के उम्मीदवार बजरंग बली ब्रह्मचारी से चुनाव हारे थे। उन्हें 20274 वोट मिले थे। बताते हैं कि किसी बात पर सुरेन्द्र दत्त बाजपेई इन्दिरा गांधी से नाराज हो गये तो फिर जीवन पर्यन्त उन्हें माफ भी नहीं किया था। 1969 में इन्दिरा गांधी ने गोविन्द बल्लभ पंत से राज्यसभा का टिकट भेजा जिसे सुरेन्द्र दत्त ने फाड़ दिया था।

गृहमंत्री देते थे सुरेन्द्र दत्त को सौ रुपये

परिजनों के मुताबिक सुरेन्द्र दत्त बाजपेई की सादगी से गोविन्द बल्लभ पंत प्रभावित हुये थे। 1947 से 1952 तक बाजपेई उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत के पर्सनल सेक्रेटरी रहे थे। वह तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के मित्र भी थे। रूम पार्टनर होने के कारण सुरेन्द्र दत्त बाजपेई को देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल हर महीने सौ रुपये उन्हें देते थे। लेकिन उनकी ईमानदारी भी देखिये कि यह रुपये, सुरेन्द्र दत्त बाजपेई तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री को दे देते थे। देश के पहले प्रधानमंत्री भी सुरेन्द्र दत्त के घर आये थे तब बरसात के कारण चारो ओर कीचड़ होने पर शास्त्री दुखी हुये थे। बेतवा, यमुना, चंद्रावल, पैलानी, गऊघाट में एक-एक पुल, सुमेरपुर से बांदा तक सड़क व सुमेरपुर स्टेशन जंक्शन नाम दिया था।

बाजपेई की जिद पर हटे थे मुख्यमंत्री के दामाद

सुरेन्द्र दत्त बाजपेई का उत्तर प्रदेश की सरकार में अच्छा जलवा कायम था। जब वह विधायक थे तब डीएम से काफी नाराज हो गये थे। जिलाधिकारी प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ.चरण सिंह के दामाद थे। मगर ईमानदार नेता के कहने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने दामाद का स्थानांतरण कर दिया था। बताते हैं कि दैवीय आपदा के समय जिलाधिकारी से गरीबों की मदद करने आपदा राहत बजट से करने को कहा गया लेकिन जिलाधिकारी ने मना कर दिया था। जिलाधिकारी ने सुरेन्द्र दत्त से कहा था कि वह मुख्यमंत्री के दामाद हैं, आप जानते नहीं है। इस पर तत्काल जिलाधिकारी को हटाने हेतु मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। ईमानदार विधायक ने मुख्यमंत्री से अपेक्षा की थी कि इस जिलाधिकारी को अब किसी भी जिले की कमान न दी जाये। उन्हें दोबारा चार्ज भी नहीं दिया गया।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/राजेश

   

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