महाकुम्भ में दूसरे  अमृत स्नान से एक दिन पहले संगम में उमड़ा जनसैलाब

महाकुम्भ नगर, 28 जनवरी (हि.स.)। महाकुम्भ का दूसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या के दिन 29 जनवरी को है। इस दिन आसमान से दूसरी बार अमृत टपकेगा। इस दिन 14 जनवरी को हुए पहले अमृत स्नान से भी अधिक लोगों के पहुंचने की पूरी संभावना है। मौनी अमावस्या के दिन किए जाने वाले अमृत स्नान से न केवल आपको शुभ फल मिलते हैं, बल्कि आपके पितरों की आत्मा भी तृप्त होती है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक ये चार प्रमुख स्थान हैं, जहां कुम्भ का आयोजन किया जाता है। गौरतलब है कि मौनी अमावस्या को लगभग 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाएंगे। मौनी अमावस्या से एक दिन पहले मंगलवार को तीन करोड़ से अधिक लोगों ने संगम में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ प्राप्त किया।

कुम्भ मेले का विशेष महत्वसनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह पर्व सनातन संस्कृति की महानता को तो दर्शाता ही है। वहीं करोड़ों श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। मान्यता है कि करोड़ों वर्ष पूर्व देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत कुंभ निकला था। उसकी अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गई थीं। उन सभी स्थानों पर हर 12 वर्ष में कुंभ मेले का आयोजन होता है।

महाकुम्भ का अमृत कुम्भ से संबंधपुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर आए थे, तब देवताओं और दानवों के बीच अमृत प्राप्ति को लेकर संघर्ष छिड़ गया। भगवान विष्णु ने इस संघर्ष को रोकने और अमृत को सुरक्षित रखने के लिए मोहिनी का रूप धारण किया। उन्होंने अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए इंद्रदेव के पुत्र जयंत को सौंपा। जयंत अमृत कुम्भ को लेकर आकाश मार्ग से चले, लेकिन दानवों ने उनका पीछा किया। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं। ये बूंदें प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर, हरिद्वार में गंगा नदी में, उज्जैन में क्षिप्रा नदी में और नासिक में गोदावरी नदी में गिरीं। इन्हीं स्थानों पर कुम्भ मेले की परंपरा शुरू हुई।

12 साल में कुम्भ मेला, 6 साल में अर्धकुम्भविश्व का सबसे बड़ा मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, जबकि हर 6 साल में अर्धकुम्भ का आयोजन किया जाता है। कुम्भ पर्व का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मेले में संत-महात्मा, ऋषि-मुनि, आस्थावान श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

कुम्भ स्नान का महत्वहिंदू धर्मग्रंथों में कुंभ स्नान का महत्व विस्तार से वर्णित है। मान्यता है कि कुम्भ में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, कुम्भ मेला आध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। यहां कई आध्यात्मिक और धार्मिक सभाएं आयोजित होती हैं, जिनमें साधु-संतों के प्रवचन, योग साधना और विभिन्न अनुष्ठान शामिल होते हैं।

संगम तट पर कुम्भ मेलाप्रयागराज का कुम्भ मेला विशेष रूप से संगम तट पर आयोजित होता है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। संगम का यह स्थान हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। कुम्भ मेले के दौरान यहां लाखों श्रद्धालु एकत्रित होकर पवित्र स्नान करते हैं और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

   

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