पलवल में आज भी प्राचीन परंपरा जीवित: महिलाओं ने घर में बनाई सांझी

पलवल , 3 अक्टूबर (हि.स.)। जिला पलवल उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र से लगता हुआ है, यहां नवरात्र में सांझी पूजा की प्राचीन परंपरा आज भी कायम है। महिलाएं आज भी लोग सांझी पूजा को उसी श्रद्धा व विश्वास के साथ करती हैं। नवरात्र शुरू होने पर विवार को दीवारों पर सांझी बनाकर पूजा शुरू हो गई है। ग्रामीण महिलाएं दुर्गा पूजा के प्राचीन तौर-तरीकों, भक्ति-गीतों जैसी परंपरा को अपने में संजोये हुए हैं।

नवरात्रों के पहले दिन गुरुवार को महिलाओं ने अपने-अपने घरों की दीवारों पर सांझी बनाकर उसे रंग-बिरंगे रंगों से सजाया। चूल्हे वाली पीली मिट्टी से दीवार पर देवी मां की प्रतिमा बनाई जाती है। नवरात्रों की पूर्व संध्या पर उसमें सेलखड़ी अन्य देसी रंग भरे जाते हैं। साथ उसके श्रंगार के लिए आटे की लोई बनाकर उससे चमकीले कागजों को चिपकाकर सांझी माता के कपड़े व अन्य आभूषणों को दर्शया जाता है।

ग्रामीण महिलाओं ने सांझी के सामने दीप जलाकर व्रत की शुरुआत की। साथ ही तुलसी के वृक्ष में पानी लगाकर उसकीभी पूजा की जाती है। महिलाएं नौ दिन के व्रत के दौरान नंगे पांव रहती हैं और चारपाई या बेड पर नहीं सोती हैं, बल्कि जमीन पर ही सोती है। सुबह व्रत की शुरुआत में महिलाएं सांझी के सामने दीप जलाकर पूजा के बाद स्थानीय मंदिर परजाती हैं और देवी की प्रतिमा पर जल चढ़ाकर वापस घर लौट अती हैं।

शाम होने पर महिलाएं सांझी के सामने एकत्र होकर देवी मां के सांझी-सांझी जै ले, सांझी मांगे घी बातौ कहां से लाऊं,मैं घयौ बातो जैसे लोक गीत को गाकर माता को भोग लगाती हैं। नवरात्रों के दौरान एक विशेष बात और प्रचलित है।जिसके के अनुसार छोटे- छोटे मिट्टी के दीपक लेकर घरों में जाते हैं और केसुला मांगते हैं। गांव में उन्हें अनाज दान में अनाज देना तथा शहरों में कुछ पैसे देना बहुत शुभ कार्य माना जाता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / गुरुदत्त गर्ग

   

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