स्त्रियों का शव लेकर कोई समाज विजयी नहीं हो सकता:  प्रो. सूर्यनारायण सिंह

स्त्रियों का शव लेकर कोई समाज विजयी नहीं हो सकता: प्रो. सूर्यनारायण सिंह*स्त्रियों का शव लेकर कोई समाज विजयी नहीं हो सकता: प्रो. सूर्यनारायण सिंह*

गोरखपुर, 8 नवंबर (हि.स.)।दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में साहित्य संवाद श्रृंखला के तहत आयोजित 'संवाद' कार्यक्रम को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. सूर्यनारायण सिंह ने संबोधित किया ।

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'का समकालीन संदर्भ विषय पर बोलते हुए प्रो सिंह ने कहा कि केवल मृत व्यक्ति में ही अंतर विरोध नहीं होता। निराला का मुख्य व्यक्तित्व कवि का है । गद्य जीवन संग्राम की भाषा है जबकि मां की गांठ कविता में खुलती है । हम जिस यांत्रिक सभ्यता की ओर बढ़ रहे हैं वह हमारे भाव व संवेदना जगत को संकुचित कर रहा है, जबकि निराला की कविता अंतःकरण के आयतन को बढ़ाती है । इस क्षत विक्षत अंतस के दौर में निराला की कविता विशेष रूप से प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय आत्म मुग्धता एवं आत्म प्रशंसा का दौर है,ऐसे समय में निराला को याद करना जरूरी है जो अपने ही घेरे को तोड़ते रहे और अपने से ही असंतुष्ट रहे। निराला आत्ममुग्धता के बरक्स आत्म संशय के कवि हैं। निराला के साहित्य से हमें यह सीख मिलती है साहित्य की सृजनात्मक यात्रा में आत्मालोचन, असंतोष व संशय ज्यादा महत्वपूर्ण है।

इस संवाद कार्यक्रम का स्वागत वक्तव्य हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.कमलेश कुमार गुप्त ने दिया। विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. अनिल कुमार राय ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। मंच संचालन डॉ. रामनरेश राम एवं आभार ज्ञापन प्रो. विमलेश कुमार मिश्र ने किया। इस दौरान विभाग के शिक्षक व शोधार्थियों के साथ-साथ परास्नातक के भी विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रिंस पाण्डेय

   

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