52 गांवों की अधिष्ठात्री देवी हैं मां अंगारमोती

मां अंगारमोती की मूर्ति

धमतरी, 5 अक्टूबर (हि.स.)। गंगरेल बांध के डूब में आए 52 गांव की अधिष्ठात्री देवी मां अंगारमोती की महिमा अपरंपार है। माता के दर्शन के लिए धमतरी शहर के अलावा अन्य प्रदेशों से भी श्रद्धालु साल भर पहुंचते रहते हैं।

धमतरी शहर से ग्राम गंगरेल स्थित मां अंगारमोती मंदिर की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है। लोग सीधे बस स्टैंड से आटो व अन्य वाहन से यहां पहुंच सकते हैं। अंगारमोती मंदिर ट्रस्ट के पुजारी सुदेसिंग मरकाम ने बताया कि सन 1973 में गंगरेल बांध बनने के पहले इस क्षेत्र में 52 गांव का वजूद मौजूद था। महानदी,डोड़की नदी तथा सूखी नदी के संगम पर ही तीन गांव चंवर,बटरेल तथा कोरलम स्थित थे। मां अंगारमोती की स्थापना गंगरेल बांध के पास सन 1974 में हुई है। मूर्ति को चंवर से खिड़कीटोला से बैलगाड़ी में सवार करके गंगरेल बांध किनारे लाया गया। गंगरेल बांध बनने पर चंवर, बटरेल सहित 52 गांव डूब गए। गोंड़ आदिवासी प्रथा के अनुसार देवी की पूजा की जाती है। जनश्रुतियों के अनुसार मां अंगारमोती अंगिरा ऋषि की पुत्री है,जो धरती से प्रकट हुई हैं। पूर्व में इन गांवों की टापू पर स्थित मां अंगारमोती की मूर्ति को बांध बनने के बाद बांध किनारे ही स्थापित कर दिया गया। अभी भी 52 गांव के ग्रामीण शुभ कार्य की शुरूआत के लिए मां अंगारमोती के दरबार पहुंचते हैं। मां अंगारमोती ट्रस्ट के सचिव ढालूराम ध्रुव ने बताया कि प्रतिवर्ष दीपावली के बाद प्रथम शुक्रवार को माता दरबार में मड़ाई भरता है। इसमें 52 गांव के देवी-देवता आते हैं। जानकारी के अनुसार माता के दरबार में सिद्ध भैरव भवानी, डोकरा देव, भंगाराम की स्थापना है। 400 साल से कच्छप वंशीय (नेताम) ही मां अंगार मोती की पूजा सेवा करते आ रहे हैं। मां अंगारमोती ट्रस्ट गंगरेल अध्यक्ष जीवराखन मरई ने बताया कि चैत्र व शारदीय नवरात्र में बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों के श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। दोनों नवरात्र में बड़े स्तर पर मेला का आयोजन किया जाता है। पंचमी और अष्टमी पर माता रानी का विशेष श्रृंगार किया जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा

   

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