धूम धाम से मनाया गया पारंपरिक छठ पूजा का पर्व

धूम धाम से मनाया गया पारंपरिक छठ पूजा का पर्वधूम धाम से मनाया गया पारंपरिक छठ पूजा का पर्वधूम धाम से मनाया गया पारंपरिक छठ पूजा का पर्वधूम धाम से मनाया गया पारंपरिक छठ पूजा का पर्व नदी में खड़ी हो कर अर्ध देते महिलाएंडूबते सूर्य देव को जल देकर  छठ माता की पूजा की हुई शुरुआत

जौनपुर,08 नवंबर (हि.स.)। बीते तीन दिनों से जनपद में डाला छठ पूजा की धूम रही।डाला छठ का पर्व पूरे जनपद में धूमधाम से मनाया गया। शुक्रवार सुबह व्रती माताओं ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया।

भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व छठ पूजा के चौथे दिन जौनपुर में काफी हर्षोहल्लास के साथ मनाया गया। शहर से लेकर गांव तक सिर पर पूजा सामग्री और दउरा लेकर छठ पूजा घाटों पर जाते लोग दिखे। पीछे- पीछे ... कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए.., केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके..। गीतों की धुन लोग थिरकते नजर आए।

जिले के गोपी घाट, अचला घाट, बीबीपुर घाट,बेलाव घाट सहित कई घाटों पर पर भक्तों का भारी मेला उमड़ी रही। वहीं सुबह होते ही भक्तों की भारी भीड़ इन घाटों पर उमड़ पड़ी है।

जहां व्रती महिलाओं ने पानी में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दी। साथ ही बेटे, पति की लंबी उम्र की मंगलकामना की। अरुणोदय पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर महिलाएं व्रत का पारण की। वहीं, घाटों की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। बुधवार

शाम से ही सुबह पूजा के लिए महिलाओं ने सारी तैयारियां कर रखी थी। अर्घ्य देने के लिए फलों को सूप या डलिया में 6, 12 या 24 की संख्या में सजाया गया है। इसमें संतरा, अन्नास, गन्ना, सुथनी, केला, अमरूद, शरीफा, नारियल, साठी के चावल का चिउड़ा, ठेकुआ आदि शामिल किया गया। शुक्रवार सुबह दूध, पानी और अन्य द्रव्य से उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया इसके बाद सुशोभिता की पूजा हुई।

मंगलवार को नहाए-खाए के साथ छठ पूजा की शुरुआत हुई। इसके तहत व्रती महिलाओं ने नहाने के बाद चावल, चने की दाल और लौकी की सब्जी का भोजन किया। बुधवार को खरना था। इसमें उन्होंने साठी के चावल, गुड़ और गाय के दूध से बने खीर का सेवन किया। इसके बाद निर्जल व्रत की शुरुआत हुई। व्रती महिलाओं ने नदी या तालाब किनारे मिट्टी से सुशोभिता बनाई है।

बेटों की लंबी उम्र के लिए व्रत रहती माताएं इस व्रत में शक्ति अर्थात माता षष्ठी एवं ब्रह्म अर्थात सूर्यदेव दोनों की उपासना होती है। इसलिए इसे सूर्यषष्ठी कहा जाता है। इस व्रत से जहां भगवान भास्कर समस्त वैभव प्रदान करते हैं, वहीं माता षष्ठी प्रसन्न होकर पुत्र देती हैं, साथ ही पुत्रों की रक्षा भी करती हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव

   

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