परमात्मा का पिता, शिक्षक और सतगुरु के रूप में चल रहा है दिव्य कर्तव्य

समस्तीपुर, 9 दिसंबर (हि.स.)। जिले के खानपुर में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, समस्तीपुर द्वारा दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर के तीसरे दिन बीके सविता बहन ने परमात्मा के दिव्य कर्तव्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परमात्मा मनुष्य आत्माओं की तरह जन्म मरण के चक्र से न्यारे हैं इसलिए उन्हें अपना दिव्य कर्तव्य करने के लिए परकाया अवतरित होना पड़ता है। परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में अवतरित होकर ब्रह्मा मुख से श्रेष्ठ ज्ञान देते हैं, जिसके द्वारा नई सृष्टि की स्थापना का गुप्त कर्तव्य चलता है। जो इस ज्ञान का श्रवण कर उसे धारण करते हैं उनका जीवन देव तुल्य बन जाता है।

इस प्रकार परमात्मा का अभी पिता, शिक्षक और सतगुरु तीनों रूपों में कर्तव्य चल रहा है। पिता के रूप में 21 जन्मों के लिए सुख-शांति-समृद्धि की वसीयत, शिक्षक के रूप में दैवी पद प्राप्त करने की योग्यता और सतगुरु के रूप में सद्गति देने का गुप्त कर्तव्य परमात्मा शिव का चल रहा है। परमात्म-ज्ञान के आधार से हम बदलते हैं तो जग बदलता है। इसीलिए कहा भी गया है- ज्ञान बिना गति नहीं, ज्ञान बिना सद्गति नहीं। नई दुनिया की स्थापना के कार्य के उपरांत इस पुरानी सृष्टि का शंकर द्वारा विनाश होता है और विष्णु के द्वारा नई सतयुगी दुनिया की पालना का कार्य चलता है। यह दुनिया दैवी राजस्थान कहलाती है। ऐसे समय पर भारत धन-धान्य से संपन्न रहता है। अभी हम भगवान की संपूर्ण पालना प्राप्त कर स्वयं को ऐसी दुनिया में चलने लायक महान बना सकते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / त्रिलोकनाथ उपाध्याय

   

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