शारदीय नवरात्र के पहले दिन बुन्देलखण्ड की कुलदेवी को जल चढ़ाने उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

दिन भर चलेगा अनुष्ठानों व घटस्थापना का दौर,प्रथम दिवस हुई मां शैलपुत्री की पूजा

झांसी, 3 अक्टूबर (हि.स.)। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन, मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की गई। शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। गुरुवार की सुबह ब्रम्हमुहूर्त के प्रारंभ होते ही देवी मंदिरों में पूजा अर्चना का क्रम शुरू हो गया। मंगला आरती के बाद महानगर के प्रसिद्ध मंदिरों में सुबह से ही महिला श्रद्धालु हाथों में जल कलश व पूजा की थाली लेकर जल चढ़ाने की होड़ लगी रही। महानगर समेत जिले भर के मंदिर जयकारा शेरावाली का बोल सांचे दरबार की जय से गुंजायमान हो गए। इसके अलावा महानगर समेत पूरे जिले में कुल 945 मां दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।

पंचकुइयां माता मंदिर के महंत हरिशंकर चतुर्वेदी ने बताया कि पंचकुइयां मंदिर में मां शीतला व संकटा माता विराजमान हैं। इन्हें बुन्देलखण्ड की कुलदेवी भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि नवरात्रि में 9 दिनों तक सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है। और उसके बाद से साढ़े 12 बजे तक के लिए माता की प्रतिमाओं को जल चढ़ाने के लिए खोल दिया जाता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने व पूजा अर्चना करने आते हैं। उसके बाद माता का श्रृंगार किया जाता है। उसके बाद करीब 3 घंटे तक माता का विश्राम होता है। जबकि मंदिर में विद्वान ब्राम्हणों के द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।

इन मंदिरों में भी हजारों श्रद्धालु चढ़ाते हैं जल

बुन्देलखण्ड की कुलदेवी पंचकुइयां माता मंदिर के अलावा भी सीपरी स्थित लहर की देवी मंदिर,कैमासिन माता मंदिर, मैमासिन माता मंदिर,खटकियाने की काली मैया,लक्ष्मी गेट स्थित काली माता मंदिर,मऊरानीपुर में बड़ी माता मंदिर, भदरवारा की माता,ध्वार की माता,कटेरा के पास स्थित जैत माता मंदिर आदि जिले में कुछ ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन को जाते हैं।

ऐसा है माता का स्वरूप

पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहत शांत और सरल है। माता ने दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल धारण किया हुआ है। यह नंदी नामक बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी है। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं जो योग, साधना- तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती हैं और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है।

ऐसे करें घटस्थापना

घटस्थापना यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता है, जो लगातार नौ दिन तक ही स्थान पर रखा जाता है। घटस्थापन हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रौली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल चाहिए।

कब करें शारदीय नवरात्रि में घटस्थापना ?

शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना करना, सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक होता है। घटस्थापना नवरात्रों की शुरुआत का प्रतीक है। यह अनुष्ठान प्रतिपदा तिथि अर्थात नवरात्र के शुरुआती दिन पर किया जाता है। साल 2024 में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 03 अक्टूबर 2024, सुबह 06 बजकर 19 मिनट से दोपहर तक बताया गया है।

हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया

   

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