लोस चुनाव : उप्र के सियासी अखाड़े से दूर किन्नर प्रत्याशी, 2019 में तीन ने आजमाई किस्मत

लखनऊ, 31 मई (हि.स.)। 18वीं लोकसभा के आम चुनाव में उप्र के चुनावी अखाड़े में कोई किन्नर उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने नहीं उतरा। 2019 के आम चुनाव में प्रदेश की तीन सीटों पर किन्नर प्रत्याशियों ने अपनी दावेदारी पेश की थी। बता दें, सुप्रीम कोर्ट के 2014 के ऐतिहासिक फैसले ने सभी ट्रांसजेंडरों और किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में वर्गीकृत किया है। उप्र में मौजूदा समय में 15.34 करोड़ मतदाताओं में से 6,638 तृतीय लिंग (ट्रांसजेंडर) हैं।

2024 के चुनाव में पीएम नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से देश की पहली किन्नर महामंडलेश्वर हेमांगी सखी के चुनाव लड़ने की चर्चा थी। हालांकि बाद में हेमांगी सखी ने चुनाव से दूरी बना ली। चंदौली संसदीय सीट से पदमा किन्नर ने इण्डियन नेश्नल समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा था। लेकिन जांच में उनका पर्चा खारिज हो गया।

2019 के चुनाव में तीन किन्नर मैदान में

17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में प्रदेश में तीन किन्नर प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई। इसमें पारो किन्नर, भवानी सिंह और गुड्डी किन्नर शामिल थी। लोकसभा चुनाव में पारो किन्नर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खीरी संसदीय सीट से मैदान में उतरी। पारो को 5315 वोट मिले। थर्ड जेंडर प्रत्याशी भवानी सिंह ने आम आमदी पार्टी की टिकट पर इलाहाबार सीट से अपनी किस्मत आजमाई। भवानी सिंह को 1845 वोट मिले। वहीं पूर्वांचल की कुशीनगर सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर गुड्डी किन्नर चुनाव मैदान में उतरी। गुड्डी को 5881 वोट मिले।

2014 में तीन किन्नर प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई

सन् 2014 के आम चुनाव में प्रदेश की तीन सीटों अमेठी, देवरिया और वाराणसी से किन्नर प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे। नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाली अमेठी सीट से सोनम किन्नर ने चुनावी अखाड़े में ताल ठोकी। निर्दलीय प्रत्याशी सोनम को 1252 वोट हासिल हुए। पूर्वांचल की देवरिया सीट से बरखा किन्नर ने अपनी दावेदारी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पेश की। बरखा के खाते में 4124 वोट आए। देश की सबसे चर्चित लोकसभा सीट वाराणसी से निर्दलयी प्रत्याशी के तौर पर बसीर किन्नर ने चुनाव मैदान में अपनी चुनौती पेश की। बसीर को 2850 वोट मिले।

2014 में पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरे किन्नर उम्मीदवार

साल 2014 में चुनाव आयोग की ओर से समुदाय को थर्ड जेंडर का दर्जा मिलने के बावजूद चुनावी परिदृश्य में ये गुमशुदा से हैं। 2014 के चुनाव में देशभर में 6 किन्नर प्रत्याशी मैदान में उतरे, जिसमें से तीन उप्र से थे।

2019 के चुनाव में कुल इस कम्युनिटी के महज 6 लोग ही चुनावी मैदान में खड़े थे। उनमें से सिर्फ एक को राजनीतिक दल ने टिकट दिया था। इसमें से 3 उप्र से थे। इस चुनाव में 7,322 पुरुष और कुल 726 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव में किस्मत आजमाई थी।

गोरखपुर की मेयर बनी किन्नर आशा देवी उर्फ अमरनाथ यादव

आशा देवी वर्ष 2001 में गोरखपुर महानगर की महापौर चुनी गई थीं। वह गोरखपुर की तीसरी मेयर थीं। किन्नर आशा देवी के मैदान में उतर जाने की वजह से यहां का चुनाव राष्ट्रीय फलक पर आ गया था। आशा देवी के नामांकन से लेकर मतदान तक यहां के किन्नरों ने अपनी अहम भूमिका निभाई थी। 2013 में आशा देवी का आकस्मिक निधन हो गया था।

1994 में मिला मतदान का अधिकार

देश में 1994 में ट्रांसजेंडर्स को मतदान का अधिकार मिला था। उसके 4 साल बाद 1998 में मध्य प्रदेश के शहडोल सोहागपुर विधानसभा से शबनम मौसी चुनाव जीतकर विधायक बनीं और उनका नाम देश की पहली ट्रांसजेंडर विधायक के तौर पर दर्ज हुआ। शबनम मौसी को छोड़कर इस समुदाय से अब तक कोई भी चुनाव जीतकर विधानसभा या लोकसभा की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई है।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/राजेश

   

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