जम्मू-कश्मीर में भाजपा की जीत केन्द्रीय योजनाओं व विकास की बदौलत हुई

जम्मू, 05 जून (हि.स.)। केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की पांच सीटों में से भाजपा और नेशनल कांफ्रेंस ने दो-दो सीटों पर व एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। लद्दाख सीट पर भी निर्दलीय उम्मीदवार ही विजयी रहा है।

वर्ष 1996 के बाद इस बार प्रदेश में रिकार्ड तोड़ 58.46 प्रतिशत मतदान हुआ है। श्रीनगर सीट पर 38.49 प्रतिशत, बारामुला में 59.10 प्रतिशत, अनंतनाग राजौरी सीट पर 55.40 प्रतिशत, जम्मू सीट पर 72.22 प्रतिशत और ऊधमपुर-कठुआ सीट पर 68.23 प्रतिशत मतदान हुआ।

उधमपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के जितेंद्र सिंह ने जीत हासिल की है। जम्मू लोकसभा सीट से जुगल किशोर ने जीत हासिल की है। जितेंद्र सिंह को 571076 वोट हासिल हुए हैं। जम्मू से जुगल किशोर को 687588 वोट हासिल हुए हैं।

कश्मीर संभाग की बारामुला सीट से निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल राशिद शेख ने जीत हासिल की है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बड़े अंतर से हराया है।

राजौरी-अनंतनाग संसदीय सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ अहमद ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफती को हराकर जीत हासिल की है।

श्रीनगर सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के आगा सैयद रुहुल्ला मेंहदी ने जीत हासिल की है। उन्हें 356866 वोट मिले हैं। पीडीपी के उम्मीदवार वाहिद उर रहमान को 168450 वोट मिले वह दूसरे स्थान पर रहे हैं। जबकि अपनी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद अशरफ मीर को 65954 वोट मिले।

लद्दाख सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद हनीफा ने बाजी मारी है। कांग्रेस के शेरिंग नामग्याल 35770 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे हैं। जबकि भाजपा के उम्मीदवार ताशी ग्यालसन 31505 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे

जम्मू कश्मीर में संसदीय चुनाव ने कई राजनीतिक आकांक्षाओं को उजागर किया है। इसने साबित कर दिया है कि जम्मू कश्मीर में आम कश्मीरी वोट की ताकत को पहचान चुका है और परिवारवाद की सियासत को नकारते हुए दो पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की हार की पटकथा लिख दी है।

पांच अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार से लेकर स्थानीय राजनीतिक दलों के लिए यह पहला बड़ा इम्तहान था। तमाम आशंकाओं के विपरीत चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह शांत रहीं, कहीं भी अलगाववादियों या आतंकियों के चुनाव बहिष्कार का एलान सुनने को नहीं मिला। हर जगह खूब चुनावी रैलियां हुई।

इस चुनाव में सबसे बड़ा बदलाव बारामुला संसदीय सीट पर पर देखने को मिला। तिहाड़ जेल में बंद निर्दलीय इंजीनियर रशीद ने सज्जाद गनी लोन और नेशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को हरा दिया। अनंतनाग-राजौरी संसदीय सीट पर भी ऐसा ही बदलाव देखने को मिला, जहां महबूबा मुफ्ती को हार का मुंह देखना पड़ा।

कश्मीर की तीनों सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला था। पीडीपी-नेकां ने अपने विरोधियों को भाजपा का एजेंट बताते हुए अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ मतदान की अपील की। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अपनी पार्टी ने परिवारवाद की सियासत को समाप्त कर एक नए दौर की बहाली के लिए वोट मांगा। इन दोनों दलों को भाजपा का साथ भी मिला।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब कश्मीरी युवा सीधी और साफ बात कहने वालों को अपना प्रतिनिधि चुनना चाहता है। इसलिए अगर कश्मीरी मतदाता ने बारामुला में इंजीनियर रशीद को जिताया तो श्रीनगर में नेशनल कान्फ्रेंस के आगा सैयद रुहुल्ला ने जीत हासिल की है। बारामुला में निर्दलीय इंजीनियर रशीद ने तिहाड़ जेल से ही अपना नामांकन जमा कराया था। उनके चुनाव प्रचार की कमान उनके पुत्र अबरार ने संभाली और युवाओं को अपने साथ जोड़ा। उन्हें स्थानीय मतदाताओं की सहानुभूति का भी पूरा लाभ मिला।

अपनी पार्टी के सैयद मोहम्मद अल्ताफ बुखारी और पीपुल्स कान्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन के लिए भी यह चुनाव सबक है कि कश्मीर में आप किसी दल विशेष की आलोचना कर चुनाव नहीं जीत सकते। उमर और महबूबा की हार ने परिवारवाद की सियासत से कश्मीरियों के मोहभंग की पुष्टि कर दी है। चुनाव परिणाम के बाद अब कश्मीर की सियासत में व्यापक बदलाव आने की संभावना है, क्योंकि नेशनल कान्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को ही नहीं अपनी पार्टी पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और भाजपा को भी कश्मीर में अपनी रणनीति नए सिरे से तय करनी होगी।

अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर नेकां के मियां अल्ताफ अहमद लारवी चुनाव जीते हैं। राजनीतिक मामलों के जानकारों का मानना है कि अनंतनाग-राजौरी सीट पर नेशनल कान्फ्रेंस की जीत में मियां अल्ताफ का गुज्जर-बक्करवाल समुदाय का पीर होना भी बड़े काम आया। गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी समुदाय के प्रभाव वाली इस सीट पर 85 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम ही हैं। भाजपा को उम्मीद थी कि उसने गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी समुदाय को जो राजनीतिक आरक्षण दिया है उसका उसे लाभ मिलेगा। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन भी चुनाव हार गए हैं, वह भी बारामुला से मैदान में थे। संसदीय चुनाव में यह उनकी दूसरी हार है।

राजनीति के जानकार अधिवक्ता चन्द्र मोहन शर्मा से जब लोकसभा चुनाव परिणामों के बारे में बात हुई तो उनका साफ कहना था कि भाजपा ने जम्मू-कश्मीर की केवल दो सीटों पर ही चुनाव लड़ा और जीता भी। उन्होंने जीत का मुख्य कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में शुरू की गई जन कल्याण की केन्द्रीय योजनाएं, अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में बहती विकास की लहर, लोगों का मोदी पर भरोसा, राष्ट्रीय सुरक्षा, विश्व में बढ़ता भारत का सम्मान, गरीबों के कल्याण के लिए शुरू की गई कई महत्वपूर्ण योजनाएं, सवर्ण जाति के गरीबों के लिए आरक्षण, पहानी-गुज्जर-बक्करबालों को आरक्षण और सबसे बड़ी बात महिलाओं के उत्थान के लिए कई योजनाओं को बताया।

उनका कहना था कि जम्मू संभाग के अलावा कश्मीर में बदले आलात, आतंकवाद, अलगाववाद व परिवारवाद की राजनीति से छुटकारा भी जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक अहम भूमिका निभायी है। इसके साथ ही भाजपा के कैडर की बूथ स्तरीय मेहनत रंग लाई है। जम्मू और ऊधमपुर-कठुआ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस था। सभी की नजरें उधमपुर-कठुआ सीट पर थीं, क्योंकि पीएमओ में मंत्री डा. जितेंद्र सिंह को कांग्रेस के उम्मीदवार चौधरी लाल सिंह से कड़ी टक्कर मिल रही थी। जितेंद्र सिंह की जीत में केन्द्रीय योजनाएं और भाजपा के कैडर की बूथ स्तरीय मेहनत काम आयी और वह तीसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। जम्मू सीट पर भी भाजपा उम्मीदवार जुगल किशोर तीसरी बार विजयी रहे। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमन भल्ला को लगातार दूसरी बार हराया है।

हिन्दुस्थान समाचार/बलवान/सुनीत

   

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