विद्या भारती शिक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ा गैर सरकारी संस्थान : यतीन्द्र

--हम केवल बालक शिक्षित ही नहीं बल्कि राष्ट्रोत्थान के लिये कार्यकर्ता भी गढ़ते हैं : कंचन सिंह

--दस दिवसीय नवचयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग का हुआ समापन

प्रयागराज, 27 जून (हि.स.)। आज विद्या भारती शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा गैर सरकारी संस्थान है। जहां आचार्य परिवार की संख्या लगभग 01 लाख 35 हजार है। आप सभी से आग्रह है कि यहां से साधक बन कर जायें क्योंकि आपको समाज के परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। यह बातें मुख्य अतिथि विद्या भारती के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री यतीन्द्र ने गुरूवार को ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलेज सिविल लाइन्स में चल रहे दस दिवसीय नव चयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग के समापन पर कहा।

उन्होंने नवचयनित आचार्य बन्धुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप सभी ने इस दस दिवसीय वर्ग में जो कुछ भी सीखा, उसको अपने जीवन में अवतरित करते हुए अपने शिक्षण कौशल को विकसित करना है। उम्मीद है कि नित्य नूतन प्रयोगों एवं शिक्षा की नई तकनीकों के माध्यम से भैया-बहनों का सर्वांगीण विकास कर विद्या भारती के लक्ष्य को साकार करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगें।

भारतीय शिक्षा समिति पूर्वी उप्र के अध्यक्ष कंचन सिंह ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि जो कुछ भी ज्ञान आपने इस वर्ग से प्राप्त किया है वह निश्चित रुप से आपको विद्या भारती को समझने में सहायता प्रदान करेगा। हम केवल बालक को शिक्षित करने का कार्य नहीं करते हैं बल्कि राष्ट्र उत्थान के लिये कार्यकर्ता गढ़ने का भी कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक आचार्य को स्वाध्यायी होना चाहिए जिससे वह कक्षा कक्ष में भैया बहनों के सामने पंचपदी शिक्षण पद्धति के आधार पर अपने शिक्षण कौशल का पूर्ण आत्मविश्वास के साथ प्रदर्शन कर सकें।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के सचिव दिव्यकान्त शुक्ल भी उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि को सम्भाग निरीक्षक गोपाल तिवारी, अध्यक्ष को युगल किशोर मिश्र तथा विशिष्ट अतिथि को विक्रम बहादुर सिंह परिहार ने स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्रम व श्रीफल देकर सम्मान किया। कार्यक्रम में डॉ0 राम मनोहर, शेषधर द्विवेदी, विजय उपाध्याय, चिन्तामणि सिंह, जगदीश सिंह, सुमन्त पाण्डेय, गणेशदत्त उपाध्याय तथा भरत सिंह आदि उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/बृजनंदन

   

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