सीईईडब्ल्यू की सर्वे रिपोर्ट में खुलासा- पंजाब में कम समय में पकने वाली धान की किस्मों की मांग बढ़ी

- सीआरएम मशीनों का उपयोग शुरू होने के बाद भी पराली जलाने से रोकने की चुनौतियां मौजूद

चंडीगढ़, 02 जुलाई (हि.स.)। पंजाब में कम समय में पकने वाली धान की किस्मों की मांग बढ़ रही है। पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए किसानों ने इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों का उपयोग शुरू किया है, लेकिन उचित प्रशिक्षण की कमी, मशीनों के इस्तेमाल से गेहूं का उत्पादन घटने व कीटों के हमले होने की गलत धारणा जैसे कारणों से अभी भी पराली जलाने से रोकने की चुनौतियां मौजूद हैं।

यह जानकारी मंगलवार को जारी की गई काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) की एक नई रिपोर्ट से सामने आई है। सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट ‘हाउ कैन पंजाब इंक्रीज द एडॉप्शन ऑफ क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट मेथड्स?’ 2022 के खरीफ सीजन पर किए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसमें पंजाब के 11 जिलों के लगभग 1,500 किसान शामिल रहे। पंजाब ने पिछले छह वर्षों में सतत कृषि की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिनमें 1,560 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश और 1.38 लाख सीआरएम मशीनों का वितरण शामिल है।

सीईईडब्ल्यू रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कम अवधि वाली धान की किस्मों की मांग बढ़ रही है। इन किस्मों को सरकार की ओर से प्रोत्साहित किया जा रहा है, क्योंकि इनकी कटाई पहले की जा सकती है, जो पराली जलाने की जरूरत को घटाती है। सर्वेक्षण में शामिल लगभग 66 प्रतिशत किसानों ने 2022 में पीआर 126 और पीआर 121 जैसी कम अवधि की परमल चावल की किस्में लगाई थीं। अधिकांश किसानों ने कहा कि आने वाले सीजन में वे इन किस्मों की खेती को जारी रखेंगे, क्योंकि इनका प्रदर्शन अच्छा है।

हालांकि, पराली जलाने में ‘उच्च और मध्यम’ स्तर वाले जिले संगरूर और लुधियाना में किसान 2022 में लंबी अवधि और पानी की अधिक खपत करने वाली पूसा 44 किस्म को उगाते थे। खरीफ सीजन 2022 में किए गए इस सर्वेक्षण में शामिल 36 प्रतिशत से अधिक किसानों ने धान की पूसा 44 किस्म लगाई थी, क्योंकि इसकी उपज ज्यादा है। अक्टूबर 2023 में, प्रदेश ने आधिकारिक रूप से पूसा 44 की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन निजी कंपनियों के माध्यम से अभी भी इसके बीज चलन में मौजूद हैं।

सीईईडब्ल्यू के सीनियर प्रोग्राम लीड डॉ. अभिषेक कार ने कहा कि हवा को स्वच्छ बनाने के लिए खास तौर पर उत्तरी भारत में पराली जलाने की समस्या का समाधान बहुत जरूरी है। हाल के वर्षों में पंजाब में किसानों के बीच इन-सीटू और एक्स-सीटू पद्धितयों को अपनाना बहुत आम हो गया है। पंजाब 2024 में धान की फसल (चक्र) के लिए तैयार है, सीआरएम मशीनों का अधिकतम उपयोग, मशीनों के लगातार इस्तेमाल से जुड़े किसानों के भ्रम का निवारण और पराली के लिए एक सक्षम बाजार सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध उपायों की योजना बनाना महत्वपूर्ण है। ये कदम राज्य को पराली जलाने के मामलों को शून्य बनाने में मदद करेंगे।

सीईईडब्ल्यू के प्रोग्राम एसोसिएट कुरिंजी केमन्थ ने कहा कि धान की पराली की मात्रा और उत्तरी भारत में चावल-गेहूं की सघन खेती के बीच मिलने वाले सीमित समय को देखते हुए शत-प्रतिशत धान की पराली को मिट्टी में मिला पाना चुनौतीपूर्ण है। हमने पाया है कि पंजाब में ज्यादा से ज्यादा किसान पराली प्रबंधन की एक्स-सीटू विधियों को,संचालन की सरलता और अतिरिक्त आय की संभावना के कारण अपना रहे हैं। इस क्षेत्र की वृद्धि के लिए औद्योगिक नेतृत्व की जरूरत है। जैसा कि देश बजट-2024 का इंतजार कर रहा है, इसमें फसल बायोमास के उपयोग की मांग, एक्स-सीटू सीआरएम के लिए प्रोत्साहन और बायोमास आपूर्ति श्रृंखला में अधिक भागीदारी को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल किसानों में से लगभग 33 प्रतिशत ने एक्स-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन उपायों को चुना, जिनमें से 66 प्रतिशत किसान पहले इन-सीटू पराली प्रबंधन उपायों का इस्तेमाल करते थे। यह संचालन में आसानी और इन-सीटू उपायों की अपेक्षाकृत ऊंची लागत एक्स-सीटू विकल्पों की बढ़ती प्राथमिकता को दर्शाता है।

रिपोर्ट में पाया गया है कि पराली प्रबंधन मशीनों तक पहुंचने या उन्हें किराए पर लेने में व्यक्तिगत संबंधों को डिजिटल समाधानों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है। लगभग 82 प्रतिशत किसानों ने दोस्तों या रिश्तेदारों से सीआरएम मशीनों को किराए पर लिया था। केवल एक प्रतिशत किसान फार्म मशीनरी के किराए पर मशीनरी दिलाने की सेवाओं तक पहुंचने के लिए पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के आई-खेत ऐप का उपयोग करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/संजीव/सुनीत

   

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