मिट्टी के दिये करेंगे दिपावली रोशन, वोकल फॉर लोकल के साथ लोग चीनी वस्तुओं का कर रहे बहिष्कार

-धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मिट्टी का दीपक जलाने से होती है मंगल और शनि की कृपा

कठुआ 29 अक्टूबर (हि.स.)। रोशनी का पर्व दीपावली के मौके पर मिट्टी के दिये की रोशनी से ही घर रोशन होता है, अमावस्या की अंधेरी रात में दिये की जगमगाती रोशनी से चारों तरफ उजाला ही उजाला हो जाता है, अंधेरे को चीरते हुए खूबसूरत दियों के बगैर दीपावली पर्व अधूरा सा लगता है।

बीते कुछ वर्षों से कोरोना महामारी के चलते लोगों ने चाइनीस चीजों का पूर्ण रूप से बहिष्कार कर दिया है, जबकि अब देसी सभ्यता को अपना रहे हैं। जम्मू कश्मीर के जम्मू संभाग में मिट्टी के दिये बनाने वालों के काम बिल्कुल ठंडे बस्ते में थे, लेकिन कोरोना महामारी के बाद इंसान को अपनी सभ्यता परंपरिक वस्तुएं को अपनाना सिखा दिया और चाइनीस वस्तुओं का बहिष्कार करना सिखाया। जम्मू में दीपावली का त्यौहार आज भी परंपरागत रूप से मनाया जाता है, चाइनीस लाइटों की चकाचौंध के बीच आज भी भारतीय परंपरा के अनुसार दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों का खास महत्व रहता है और इसके बिना दीपावली का त्यौहार अधूरा सा रहता है। यही कारण है कि दीपावली को लेकर शहरी क्षेत्र में मिट्टी के दीयों की कई दुकानें सजना शुरू हो गई हैं। लोगों के घरों में दीपावली पर मिट्टी की खुशबू और दियों की टिमटिमाती नजर आएंगे। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के बाजारों में मिट्टी के दीयों की जमकर बिक्री हो रही है। जम्मू संभाग में कुम्हार समुदाय के लोग इन मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम करते हैं, दीपावली के पर्व से पूर्व कुम्हार समुदाय के लोग रंग बिरंगे मिट्टी के दिये बनाने में जुट जाते हैं।

कठुआ से कुम्हार सोमराज, राजकुमार ने बताया कि पहले मिट्टी के दीयों का चलन पूरी तरह से खत्म हो चुका था, दीपावली पर्व पर सभी लोग चाइनीस लाइटें, मोमबत्तियां जलाकर इस त्योहार को मनाते थे और मां लक्ष्मी की पूजा करने के लिए मात्र एक या दो मिट्टी के दिये लेकर जाते थे, लेकिन अब लोगों में जागरूकता आई है अब चाइनीस वस्तुओं से नफरत करते हैं। अब दीपावली पर मिट्टी के दीयों की परंपरा एक बार फिर से लौट आई है। कोरोना महामारी से पहले चाइनीस वस्तुओं ने पूरे बाजार पर अपना कब्जा जमा रखा था। दीपावली पर्व से पहले जगमगाती चाइनीस लाइटें बाजार में जगह-जगह दुकानों पर दिखाई देती थी जबकि मिट्टी के दीयों का चलन लुप्त होते जा रहा था। इसी बीच 2020 में कोरोना महामारी ने दस्तक दिया जिसका आगमन चाइना से हुआ था। जिसके बाद लोगों ने चाइनीज वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया और पारंपरिक दीये बनाने वालों का चलन एक बार फिर से आ गया और कुम्हार समुदाय की किस्मत चमक गई तभी तो कहते हैं कि भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं।

वोकल फॉर लोकल के साथ लोग चीनी वस्तुओं का बहिष्कार तो कर ही रहे हैं और पारंपरिक मिट्टी के दीयों की ओर लोगों का रुझान भी बड़ा है। कारीगिर इस बार दीयों को आकर्षक डिजाइन और रंग-बिरंगे रूप में दियों को बना रहे हैं। जम्मू संभाग के जिला कठुआ में भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर बहुत मशहूर मिट्टी के दीए बनते हैं, इसी प्रकार सांबा जिला के विजयपुर के मशहूर इलाके ठंडी खुई से सटे राड़िया गांव की मिट्टी दीया बनाने के काम आती है। जिसे जम्मू संभाग के लाखों लोग अपने घरों में रोशनी का त्योहार दीपावली मनाते हैं। कारीगर ने बताया कि दीपावली को मात्र तीन दिन रह गए हैं उससे पहले कारीगिर मिट्टी के दीपक तैयार कर अपने हुनर से लाखों लोगों के घरों को रोशन करेंगे। हालांकि बहुत सारी चाइनीस वस्तुओं का बहिष्कार तो लोगों ने किया है, लेकिन उसके बावजूद भी बाजारों में अभी भी चाइनीस निर्मित उत्पाद उनके लिए मुसीबत है, अभी भी लोग चाइनीस वस्तुओं को बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि मिट्टी के दीए बनाने वाले कारीगर प्राचीन परंपरा को जीवंत रखने के लिए बंश दर बंश विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। पंडित अशोक शर्मा ने बताया कि दीपावली पर्व पर जो लोग अपने घरों में चाइनीस लाइटें या मोमबत्तियां जलाकर मना रहे हैं, उसकी कोई भी धार्मिक मान्यता नहीं है। उन्होंने कहा कि मिट्टी के दीयों का ही धार्मिक महत्व होता है, धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि आगामी दीपावली पर्व पर लोग अपने घरों के आंगन में मिट्टी के दियों से रोशनी करें। एक तो उनसे मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होगी और इसके साथ साथ कुम्हार समुदाय जो इस कारोबार से जुड़े हैं उनके घरों में भी रोशनी होगी। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल की अपील का भी लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा है। लोग चाइनीस वस्तुओं के बजाय अब मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं इससे कुम्हार भी बेहद खुश है। आधुनिकता के इस दौर में मिट्टी के दीए की पहचान बरकरार रखने के कारण कुम्हारों के कुछ कमाई की उम्मीद बन गई है। आज कुम्हार की कला से निर्मित खिलौने वाली सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की मांग भी बड़ी है।

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हिन्दुस्थान समाचार / सचिन खजूरिया

   

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