वसुधैव कुटुम्बकम का जो सूत्र भारत ने दिया, दुनियाभर में लोग आज उसी पथ पर अग्रसर: मनोजकांत

Four-day 'Kashi Shabdonotsav' Four-day 'Kashi Shabdonotsav'

-चार दिवसीय 'काशी शब्दोत्सव' राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

-बोले वक्ता, भारत का भविष्य उसके अतीत में निहित

वाराणसी, 18 फरवरी (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र सह प्रचार प्रमुख मनोज कांत ने कहा कि आज भारत ने दुनिया के सामने वसुधैव कुटुम्बकम का जो सूत्र दिया है, दुनियाभर में लोग आज उसी पथ पर अग्रसर हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा पर निरन्तर शोध की आवश्यकता है। क्षेत्र सह प्रचार प्रमुख मनोज कांत रविवार को चार दिवसीय 'काशी शब्दोत्सव' 2024 राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वैदिक विज्ञान केंद्र सभागार में आयोजित संगोष्ठी के तीसरे और अन्तिम सत्र 'विकसित भारत और विश्वगुरू' में बतौर मुख्य वक्ता मनोज कांत ने कहा कि भारत में संवाद और शास्त्रार्थ की लम्बी परम्परा है। आज अपने स्व और मूल्य को समझने के साथ काशी को विश्व के कल्याण के लिए कार्य करने की भी आवश्यकता है।

संगोष्ठी की मुख्य अतिथि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष रश्मि सामन्त ने कहा कि हमारी विचार धारा को आठवीं शताब्दी से तोड़ने का प्रयास चल रहा है। युवाओं से बौद्धिक विमर्श और भारतीयता को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान कर रश्मि सामंत ने कहा कि बीएचयू एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहां आज भी भारतीय मूल्य संरक्षित है। इस सत्र को प्रो. भारतेंदु सिंह,प्रो. अभयकुमार सिंह ने भी संबोधित किया।

अन्तिम सत्र की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री प्रो. राजेश्वरचार्य ने कहा कि अंग्रेजी शब्दों के विद्वानों ने भारतीय शब्दों के स्वरूप को बदलने का बहुत प्रयास किया मगर असफल रहे। आज पुनः अपने शब्दों पर शोध की आवश्यकता है। अन्तिम सत्र में प्रो. राणा सिंह, डॉ ज्ञान प्रकाश मिश्र, डॉ लहरी राम मीणा, डॉ सचिन तिवारी, डॉ सुशील दुबे, डॉ अवधेश भट्ट, डॉ राजेश राय, डॉ वीरेंद्र सिंह, डॉ प्रमोद मिश्र, दिनेश पाठक, डॉ अरविंद कुमार, डॉ सुबोध कांत, पतंजलि पांडे, आशीष ने भी भागीदारी की।

इसके पहले, संगोष्ठी के प्रथम सत्र में दक्कन कॉलेज पुणे के पूर्व कुलपति प्रो. वसंत शिंदे ने कहा कि हड़प्पा संस्कृति में आम जनता की सहूलियत के हर इंतजाम देखने को मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में सामाजिक समानता व पंचायत राज की झलक दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी भी सभ्यता के मुकाबले हड़प्पा मोहन-जोदड़ो सभ्यता ज्यादा विकसित और उत्कृष्ट है। पुरातत्व सर्वेक्षण शोध के दौरान पता चलता है कि पूरी दुनिया को भारत ने हड़प्पा सभ्यता के माध्यम से एक नई राह दिखाने का कार्य किया।

प्रथम सत्र के विशिष्ट वक्ता श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण ने कहा कि भारत का भविष्य उसके अतीत में निहित है। हमारा गौरवशाली अतीत वर्तमान में भटकता प्रतीत हो रहा है। सनातन परंपरा की हर कथा कहानी में नवयुग नेतृत्व की ओर इशारा मिलता है। अपने गौरवशाली अतीत से सीख कर हम वर्तमान में नए वैज्ञानिक शोध विकसित करें।

संगोष्ठी के समन्वयक औेर बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि भारत के मूल निवासी कौन है? वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी हम प्राचीन काल में अत्यंत उन्नत थे। आज जब भी दुनिया में ज्ञान और विज्ञान की बात होती है भारत के शोध को झुठलाया नहीं जा सकता।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. उपेंद्रनाथ त्रिपाठी ने वेद में जीवन जीने की दृष्टि व नई शिक्षा नीति में भारत के मूल इतिहास और संस्कृति को स्थान देने पर बल दिया। प्रथम सत्र का संचालन डॉ अमित उपाध्याय ने किया।

संगोष्ठी के दूसरे सत्र में प्रो. मीनू अवस्थी ने कहा कि हिंदी साहित्य की रचना ही देश को विश्व गुरु के रूप में देखने की है। सूफी कवियों ने प्रेम कथाओं के माध्यम से व्यक्तियों में प्रेम व विश्वास बनाया। पूज्य संतों ने हमारी भाषा व संस्कृति को जीवित रखा।

बतौर मुख्य वक्ता प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने कहा कि भक्तिकाल ने हमारी आस्थाओं को हमारी जड़ों से जोड़े रखने का कार्य किया। मूल्यवादी शिक्षा दुनिया को सबसे पहले हमने ही दी। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. हृदय रंजन शर्मा व संचालन डॉ हेमंत सिंह ने की। इसके पहले संगोष्ठी के पहले सत्र की शुरुआत बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण, दीप प्रज्जवलन और विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुई।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

   

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