भारतीय दर्शन में जो योगदान शंकराचार्य का वही पाश्चात्य में इमैनुअल काण्ट का : डॉ. आलोक पाण्डेय

--‘‘काण्ट का आधुनिक भारतीय दर्शन पर प्रभाव’’

प्रयागराज, 27 फरवरी (हि.स.)। भारतीय दर्शन में जो अभूतपूर्व योगदान शंकराचार्य का रहा वही पाश्चात्य दर्शन में इमैनुअल काण्ट का रहा है। जर्मनी की समृद्ध संस्कृति ने काण्ट के विचारों को प्रतिफलित करने में योगदान दिया। यही कारण रहा है कि जर्मन संस्कृति ब्रह्माण्ड को सर्वोपरि मानकर सोचती है। उक्त विचार डॉ. आलोक पाण्डेय ने ‘‘काण्ट का आधुनिक भारतीय दर्शन पर प्रभाव’’ व्याख्यान में व्यक्त किया।

मंगलवार को ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में आई.सी.पी.आर नई दिल्ली द्वारा स्टडी सर्किल योजना व्याख्यानमाला के अन्तर्गत दर्शनशास्त्र विभाग और आई.क्यू.ए.सी के संयुक्त तत्वावधान में ग्यारहवाँ विशिष्ट व्याख्यान आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. पाण्डेय ने कहा कि काण्ट ने मस्तिष्क को तीन भागों में विभाजित किया है। जिसमें क्या है, क्या करना चाहिये एवं सौन्दर्य बोध है। काण्ट ने दर्शन के क्षेत्र में वही समृद्ध विचार दिया, जो चिकित्सा के क्षेत्र में हनीमैन ने एवं सामाजिक क्रान्ति के क्षेत्र में कार्ल मार्क्स ने दिया। जिनका संबंध जर्मनी से ही रहा।

उन्होंने कहा कि यदि कोई नियम बनाया जाये तो उसमें संशय या विरोधाभास नहीं होना चाहिये। जिस तरह भारतीय दर्शन में सत्यं, शिवम्, सुंदरम् की कल्पना की गयी है उसी तरह काण्ट ने सत्य का अन्वेषण, कल्याण का अन्वेषण और क्रिटिक्स ऑफ जजमेंट की स्थापना की। काण्ट ने बुद्धिवाद और अनुभववाद के दर्शन का समन्वय कर संदेहवाद की स्थापना की। ज्ञान को विवेचित करते हुए उन्होंने कहा कि देश व काल से परे व्याख्यायित करने वाला ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है।

डॉ. पाण्डेय ने बताया कि काण्ट का दर्शन व्यावहारिक रूप से शंकराचार्य के दर्शन से कहीं अधिक गहरा व वैज्ञानिक था। उन्होंने कहा कि हम जो जानते हैं, वह शाश्वत नहीं वरन् भ्रम भी हो सकता है, जबकि शंकराचार्य का दर्शन ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का है। उन्होंने आगे कहा कि काण्ट का दर्शन जहां समाप्त होता है वहीं अद्वैतवाद शुरू होता है। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन पर काण्ट के दर्शन का गहरा प्रभाव रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द शंकर सिंह तथा संचालन डॉ महेन्द्र यादव ने एवं संयोजन व धन्यवाद ज्ञापन डॉ अमिता पाण्डे ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के डॉ. मनोज कुमार दुबे, सहायक आचार्य डॉ. रश्मि जैन, डॉ. महेश प्रसाद राय, शोधार्थी आकांक्षा शुक्ला, संजू चौधरी व स्नातक, परास्नातक के छात्र उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/सियाराम

   

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