लोस चुनाव : भाजपा इस बार ढहा पाएगी मैनपुरी का किला !

-भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी, त्रिकोणीय मुकाबले में सपा की राह आसान नहीं

लखनऊ, 21 मार्च(हि.स.)। उत्तर प्रदेश की 80 में से एक सीट है, जहां अभी तक एक बार भी कमल नहीं खिला। समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाली यह सीट है मैनपुरी। 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर में भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल सोनेलाल के साथ मिलकर 80 में से 73 सीटें जीती थीं। जिन सात सीटों पर कमल नहीं खिला था, उनमें मैनपुरी भी एक थी।

पिछले आम चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दल ने मिलकर 64 सीटें जीतीं। इस बार भाजपा ने 2014 में हारी हुई सात में से चार सीटों कन्नौज, बदायूं, अमेठी और फिरोजबाद पर कमल खिला दिया। मैनपुरी, आजमगढ़ और रायबरेली इन तीन सीटों पर इस बार भी उसे पराजय मिली। 2022 में आजमगढ़ सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ सीट सपा से छीन ली।

नेहरू गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाली रायबरेली सीट 1996 और 1998 के चुनाव में भाजपा जीत दर्ज करा चुकी है। ऐसे में मैनपुरी इकलौती ऐसी सीट है जहां भाजपा अपनी स्थापना से लेकर 2019 के आम चुनाव तक एक बार भी जीती नहीं है।

सबसे ज्यादा बार जीती है सपा

मैनपुरी लोकसभा सीट को सपा का गढ़ कहा जाता है। सपा का गठन भले ही वर्ष 1992 में हुआ, परंतु मुलायम सिंह यादव के राजनीति में उभार के साथ ही यहां उनका वर्चस्व बन गया था। उनके समर्थन या पार्टी वाले प्रत्याशी ही सांसद बनते रहे। फिर सपा के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव खुद वर्ष 1996 में मैदान उतरे और सांसद बने। इसके बाद से सपा यहां अजेय रही है।

1996 में पहली बार मुलायम सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज कराई थी। मुलायम ने भाजपा के उपदेश सिंह चौहान को हराया था। 1998 में सपा की ओर से बलराम यादव ने भाजपा के अशोक यादव को हराया था। 1999 में सपा के बलराम यादव और भाजपा के अशोक यादव के बीच मुकाबले में सपा हावी रही। 2004 और 2009 के चुनाव में मुलायम सिंह ने जीत दर्ज कराई। दोनों बार बसपा दूसरे स्थान पर रही। 2014 और 2019 के आम चुनाव में मुलायम सिंह यादव ही यहां से सपा का चेहरा रहे। मुलायम सिंह ने दोनों चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों को हराया। हालांकि पिछले चुनाव में सपा और भाजपा उम्मीदवार के बीच हार अंतर पहले की बजाय काफी कम हुआ।

पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कराई

मैनपुरी संसदीय सीट पर 1952 में हुए पहले आम चुनाव में कांगेस के बादशाह गुप्ता ने भारतीय जनसंघ के रघुबर सहाय का हराया था। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी प्रत्याशी बंसी दास धनगर, 1962 में कांग्रेस के बादशाह गुप्ता, 1967 और 1971 के चुनाव में कांग्रेस के महाराज सिंह ने जीत दर्ज कराई। 1977 में भारतीय लोकदल के रघुनाथ सिंह वर्मा यहां से जीते। 1980 जनता पार्टी सेक्युलर के रघुनाथ सिंह वर्मा, 1984 में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव जीते। 1989 और 1991 में जनता दल के उदय प्रताप सिंह यहां के सांसद रहे। 1996 के बाद हुए हर चुनाव में सपा ही यहां से जीतती आ रही है।

उपचुनाव में जीतीं डिंपल यादव

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद 2022 में हुए उप चुनाव में उनकी बहू डिंपल यादव (618128) ने 288461 वोटों के अंतर से भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य (329659) को पराजित किया। डिंपल यादव ने जीत के साथ ही लोकसभा सीट में शामिल सभी पांच विधानसभाओं में बढ़त प्राप्त करने का नया कीर्तिमान भी स्थापित कर दिया। इससे पहले अपने इस गढ़ में भी सपा कभी पांचों विधानसभा विधान क्षेत्रों से बढ़त नहीं ले सकी थी।

उपचुनाव में सहानुभूति की लहर में मिली जीत

प्रदेश की राजनीति को नजदीक से जानने वालों के अनुसार, 2022 में उप चुनाव में डिपंल यादव की जीत के पीछे कई कारण थे। जिनमें मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण मिली सहानुभूति। शिवपाल यादव और अखिलेश यादव का एक साथ आना। अखिलेश यादव व पूरे परिवार का गांव-गांव प्रचार। हर जाति-वर्ग के मतदाताओं से संपर्क-संवाद। वोट के रूप में नेताजी को श्रद्धांजलि देने की अपील ने हार जीत के अंतर को बढ़ा दिया। डिपंल यादव ने 288461 मतों के अंतर से भाजपा उम्मीदवार को हराया। जबकि 2019 में चुनाव में मुलायम सिंह यादव (524926) और भाजपा प्रत्याषी प्रेम सिंह शाक्य (430537) के बीच जीत हार का अंतर 94 हजार वोट थे।

पांच विधानसभा में किसका पलड़ा भारी

मैनपुरी लोकसभा में पांच विधानसभा आती है जिनमें में मैनपुरी सदर, जसवंत नगर, करहल, किशनी, भोगांव विधानसभाएं हैं। करहल, किशनी और जसवंत नगर सपा और दो विधानसभा मैनपुरी सदन और भोगांव भाजपा के खाते में हैं। करहल से सपा प्रमुख पूर्व मुख्ममंत्री अखिलेष यादव और जसवंत नगर से सपा के सीनियर नेता और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह विधायक हैं।

मैनपुरी सीट का समीकरण

इस सीट पर सवा चार लाख यादव, करीब सवा तीन लाख शाक्य, दो लाख ठाकुर और एक लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं। वहीं, दलित दो लाख हैं, जिनमें से 1.20 लाख जाटव और बाकी धोबी और कटारिया समुदाय के हैं। एक लाख लोधी, 70 हजार वैश्य और एक लाख मतदाता मुस्लिम हैं। मैनपुरी सीट पर यादवों और मुस्लिमों का एकतरफा वोट सपा को मिलता रहा है।

2024 में सपा ने डिपंल यादव पर खेला दांव

समाजवादी पार्टी ने यादव परिवार की मजबूत सीट मैनपुरी से डिंपल यादव को मैदान में उतारा है। भाजपा और बहुजन समाज पार्टी ने अभी अपने उम्मीदवारों का ऐलान नहीं किया है। मैनपुरी में तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होगा।

भाजपा ने ताकत झोंकी

भाजपा इस बार सपा को हराने के लिए ताकत झोंक रखी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा अपर्णा यादव को मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारेगी। अगर ऐसा होता है तो इस पर मैनपुरी लोकसभा सीट पर जेठानी और देवरानी के बीच मुकाबला होगा। वैसे पूरी तस्वीर उम्मीदवारों ऐलान के बाद ही साफ होगी।

सपा की राह आसान नहीं

पिछले लोकसभा उपचुनाव को छोड़ दें तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से भाजपा का मत प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। उसके मत प्रतिशत के बढ़ते ग्राफ को थामना भी सपा के लिए आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ वर्ष 2019 के चुनाव में सपा का बसपा के साथ गठबंधन था। ऐसे में सीधी भाजपा से लड़ाई थी, परंतु इस बार बसपा भी चुनाव मैदान में होगी। त्रिकोणीय मुकाबले में सपा की मुश्किलें बढ़ना तय है। ऐसे में सपा गढ़ को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ आशीष वशिष्ठ/दिलीप

   

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