भारत का चीनी बाउल मुजफ्फरनगर, किसके जीवन में भरेगा जीत की मिठास

लखनऊ, 28 मार्च (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित मुजफ्फरनगर मुख्य रूप से “भारत का चीनी बाउल” के नाम से जाना जाता है। जिले की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और गन्ना, कागज और इस्पात उद्योगों पर आधारित है। मुजफ्फरनगर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की अपनी ही पहचान है। पश्चिमी यूपी की इस सीट को जाट बेल्ट माना जाता है। 2013 के दंगों की वजह से मुजफ्फरनगर देशभर में चर्चा का विषय बन गया था।

मुजफ्फरनगर संसदीय सीट का राजनीतिक इतिहास

बात अगर मुजफ्फरनगर संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की करें तो यहां पर भाजपा 2014 से लगातार चुनाव जीत रही है। 1990 के बाद के चुनाव को देखें तो 1991 से लेकर अब तक 8 लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर सीट से सिर्फ 2 नेताओं को लगातार 2 बार जीत मिली है। अब तक के संसदीय इतिहास में कोई भी जीत की हैट्रिक नहीं लगा सका है। 2014 से भाजपा यहां पर अजेय बनी हुई है और अब उसकी नजर चुनावी जीत की हैट्रिक पर लगी है।

2019 के चुनाव में भाजपा ने कमल खिलाया

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां पर चुनाव बेहद कांटेदार रहा था और अंत तक हार-जीत तय नहीं हो सकी थी। भारतीय जनता पार्टी की ओर से संजीव कुमार बालियान ने राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष और उम्मीदवार अजित सिंह को हराया था। संजीव बालियान को चुनाव में 573,780 वोट मिले तो अजित सिंह के खाते में 567,254 वोट आए। बालियान ने महज 6,526 मतों के अंतर से चुनाव में जीत हासिल की थी।

2014 में उत्तर प्रदेश में चली भारतीय जनता पार्टी की लहर का असर मुजफ्फरनगर में भी देखने को मिला था। संजीव बालियान ने इस सीट पर करीब 60 फीसदी वोट हासिल किए थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार कादिर राणा को सिर्फ 22 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे। संजीव बालियान ने कादिर राणा को करीब 4 लाख वोटों से हराया था।

मुजफ्फरनगर संसदीय सीट के विधानसभा क्षेत्र

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल पांच विधानसभाएं आती हैं। इनमें बुढ़ाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना सीट आती हैं। संसदीय सीट पर भले ही भाजपा का कब्जा हो, लेकिन इससे जुड़ी विधानसभा सीटों पर किसी एक दल का दबदबा नहीं दिख रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को झटका लगा था और यहां की 5 सीटों में से उसे महज एक सीट पर ही जीत मिल सकी थी, जबकि राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी को 2-2 सीटों पर जीत मिली थी। मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट पर भाजपा को जीत मिली थी तो बुढ़ाना, चरथावल, खतौली और सरधाना सीट पर सपा-रालोद के खाते में जीत गई। चुनाव में रालोद और सपा के बीच चुनावी गठबंधन था और इसने यहां पर बाजी मार ली थी। इस बार भाजपा-रालोद का गठबंधन है।

मुजफ्फरनगर सीट का जातीय समीकरण

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो इसी सीट पर लगभग 17 लाख के आसपास मतदाता हैं। जिसमें लगभग 5 लाख मुस्लिम, 2 लाख दलित, डेढ़ लाख जाट, 1 लाख 30 हजार कश्यप, 1 लाख 20 हजार सैनी, 1 लाख 15 हजार वैश्य और लगभग 4 लाख 80 हजार ठाकुर, गुर्जर, त्यागी, ब्राह्मण, पाल, प्रजापति, सुनार और अन्य बिरादरियां हैं। इस सीट पर प्रत्याशियों के भाग्य का निर्णय जाट और मुस्लिम मतदाता ही ही मिलकर तय करते हैं।

2024 में गठबंधन के साथी बदल गए

पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था। भाजपा के सामने रालोद प्रमुख अजित चौधरी जैसा बड़ा चेहरा था। बावजूद इसके भाजपा प्रत्याशी को यहां से जीत मिली। ये जरूर है कि जीत का अंतर बड़ा नहीं था। लेकिन सपा-बसपा-रालोद तीनों के गठबंधन के बावजूद भाजपा की मामूली अंतर वाली जीत भी कई मायनों में बहुत बड़ी थी। इस बार भाजपा-रालोद का गठबंधन है। सपा-कांग्रेस इंडिया गठबंधन के साथी हैं। बसपा अकेले मैदान में है।

2024 के चुनावी मैदान के महारथी

2019 के चुनाव में बीजेपी के संजीव कुमार बालियान ने प्रदेश के कद्दावर नेता अजित सिंह को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था। भाजपा ने एक बार फिर संजीव कुमार बालियान को मैदान में उतारा है तो इंडिया गठबंधन की ओर से हरेंद्र सिंह मलिक को मौका दिया गया है। बसपा ने दारा सिंह प्रजापित को मैदान में उतारा है।

क्या कहते हैं समीकरण

आंकड़ों और समीकरण के हिसाब से भाजपा-रालोद प्रत्याशी का पलड़ा यहां भारी दिखाई देता है। लेकिन इंडिया गठबंधन जाट प्रत्याशी उतारकर भाजपा की मुश्किलें थोड़ी बढ़ा दी हैं। जानकारों का मानना है कि, बसपा अगर इंडिया गठबंधन का हिस्सा होती भाजपा और गठबंधन के बीच सीधी टक्कर होती। बसपा के अकेले मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। ये स्थिति भाजपा के लिए मुफीद है।

मुजफ्फरनगर से कौन कब बना सांसद

1952 हीरावल्लभ त्रिपाठी (कांग्रेस)

1957 सुमत प्रसाद जैन (कांग्रेस)

1962 सुमत प्रसाद जैन (कांग्रेस)

1967 लताफत अली खां (सीपीआई)

1971 डॉ. विजय पाल सिंह (सीपीआई)

1977 सईद मुर्तजा (जनता पार्टी)

1980 गयूर अली खां (जनता सेक्यूलर)

1984 धर्मवीर त्यागी (कांग्रेस आई)

1989 मुफ्ती मोहम्मद सईद (जनता दल)

1991 नरेश कुमार बालियान (भाजपा)

1996 सोहनबीर सिंह (भाजपा)

1998 सोहनबीर सिंह (भाजपा)

1999 सईदुज्जमां (कांग्रेस)

2004 मुनव्वर हसन (सपा)

2009 कादिर राना (बसपा)

2014 डॉ. संजीव बालियान (भाजपा)

2019 डॉ. संजीव बालियान (भाजपा)

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित

   

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