वकालत सिर्फ एक पेशा नहीं बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व है : न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी

- भारत का संविधान समरसता के रस भरा हुआ, उसे आत्मसात करने की आवश्यकता

वाराणसी, 20 अप्रैल (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि वकालत सिर्फ एक पेशा नहीं बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व है। हम सब को मिलकर समरस समाज के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना होगा । यहीं डॉ भीमराव अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

न्यायमूर्ति शनिवार को यहां दी सेंट्रल बार एसोसिएशन वाराणसी के सभागार में डॉ भीम राव अम्बेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में अधिवक्ता परिषद काशी की ओर से आयोजित समरसता दिवस संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने काशी से अपने आत्मीय जुड़ाव,वर्ष 1978 से 1984 तक अपने पिता के विभिन्न न्यायिक पदों पर रहने के दौरान की यादों को ताजा किया। उन्होंने संविधान निर्माण में डॉ अम्बेडकर की भूमिका को याद किया। मूल संविधान में 22 चित्रों की चर्चा किया जो समरसता को प्रदर्शित करते हैं। संविधान की प्रस्तावना में बंधुता शब्द एक समरस राष्ट्र की कल्पना को साकार करने का संकल्प है। संसद भवन के द्वार पर उकेरी गई पंक्ति (लोक देवर पत्राणनु पश्येम त्वं वयम वेरा )जिसका अर्थ है लोगों के कल्याण का मार्ग खोल दो और उत्तम संप्रभुता का मार्ग दिखाओ। न्यायमूर्ति ने बार के सदस्यों को उनके दायित्व का बोध कराया। गोष्ठी का संचालन अधिवक्ता दुर्गा प्रसाद ने किया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश वाराणसी रविन्द्र श्रीवास्तव, प्रदेश महामंत्री नीरज सिंह, बनारस बार अध्यक्ष अवधेश सिंह, सेंट्रल बार महामंत्री सुरेंद्र नाथ पांडेय, सतेंद्र राय, अशोक सिंह प्रिंस, आरपी पांडेय, विजय शंकर रस्तोगी, राजेश मिश्रा, राकेश श्रीवास्तव, अवनीश त्रिपाठी आदि की मौजूदगी रही।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर/प्रभात

   

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