अबूझमाड़ में 21 वर्ष बाद विस्थापित 25 अबूझमाड़िया परिवार घर वापसी की बना रहे योजना
- Admin Admin
- Nov 16, 2024
नारायणपुर, 16 नवंबर (हि.स.)। नक्सलियों के द्वारा वर्ष 2003 में ग्राम गारपा के 25 परिवार के 100 सदस्यों को नक्सलियों द्वारा गांव से बेदखल कर दिया गया था। नक्सल आतंक के चलते बेदखल हुए 35-40 परिवार अपना गांव छाेड़कर नारायणपुर के गुडरीपारा में विस्थापित हाेकर रह रहे थे। ग्राम गारपा में पुलिस जन सुविधा एवं सुरक्षा कैम्प स्थापित होने एवं क्षेत्र में लगातार नक्सल उन्मूलन अभियान चलाये जाने से तथा सड़क निर्माण एवं अन्य विकास कार्य होने से नक्सली गांव से दूर होते जा रहे है। जिसके परिणामस्वरूप 21 साल पूर्व गांव से भगाये गये आदिवासी परिवार नक्सल भय से मुक्त होकर अपने गांव गारपा पहुंचें तथा शिव मंदिर में पूजा अर्चना किये। अपने घर-परिवार व गांव वालों से मिलकर बेदखल आदिवासी परिवाराें में खुशी देखते ही बनती है। करीब दो दशक से अपना गांव और घर छोड़ चुके आदिवासी परिवार अपने मूल स्थान में लौटने की योजना बना रहे हैं। अपने मूल स्थान को छोड़ने के 21 वर्ष बाद यह परिवार अबूझमाड़ मे वापस लौटना चाहते हैं।
अबूझमाड़ के गारपा गांव के निवासी सुक्कुराम नुरेती ने बताया कि पैतृक भूमि को छोड़ना कभी आसान नहीं था, हमारे पास जान बचाने के लिए भागने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं था। मैं अबूझमाड़िया समुदाय से हूं, यह विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समाज है। गांव के 80 परिवारों में से लगभग 25 गायत्री परिवार के अनुयायी थे। हमारे इस काम का नक्सलियों ने विरोध किया, नक्सलियों ने हमें गायत्री परिवार का अनुसरण छोड़ने की धमकी दी थी, जिसके बाद हमने गांव छोड़ने का फैसला लिया था। उन्हाेने बताया कि अबूझमाड़ इलाके में लगातार चल रहे नक्सल ऑपरेशन के बाद अपने गांव में बसने की उम्मीद जगी है। अब अबूझमाड़ के गांवों में पुलिस कैंप स्थापित हो रहा है, हालात सुधरने लगे हैं और लोगों में विकास की उम्मीद जगी है। हमारे गारपा गांव में मैं बीते सप्ताह गया था, यहां भगवान शिव का मंदिर खोला गया है, जहां हमने पूजा अर्चना किये। यही वजह है कि हम गांव में फिर से बसने की योजना बना रहे हैं, यहां हमारे खेत हैं और घर हैं।
नारायणपुर एसपी प्रभात कुमार ने बताया कि अबूझमाड़ में लगातार नक्सल ऑपरेशन के बाद बीते आठ महीनों में गारपा, कस्तूरमेटा, मस्तूर, इराकभट्टी, मोहंती और होराडी गांव में सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं। गारपा में सुरक्षा और सहायता कैंप बीते 22 अक्टूबर को स्थापित किया गया। इन इलाकों में खोले गए कैंप की स्थापना होने से लोगों में विकास को लेकर विश्वास जगा है। हमारी इस रणनीति ने नक्सलियों को बहुत सीमित क्षेत्र पर समेट दिया है। क्षेत्र में विकास कार्यों को सुगम बनाया गया है, नारायणपुर के सुदूर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा शिविरों से हजारों ग्रामीणों को फायदा हो रहा है। यहां नियाद नेल्लनार योजनाओं के तहत विकास कार्यों और कल्याणकारी उपायों का लाभ लोगों को मिलने लगा है। उन्हाेने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार की नियद नेल्लनार योजना के तहत अबूझमाड़ के अंदरूनी गांव में विकास कार्य हो रहा है। गारपा, कस्तूरमेटा, मस्तूर, इराकभट्टी, मोहंती और होराडी गांव के पांच किलोमीटर की परिधि में तेजी से विकास कार्य हो रहे हैं। यही वजह है कि अपने गांव से बेदखल हुए आदिवासी अब ग्रामीण इलाकों में वापस लौटने की योजना बना रहे हैं।
एसपी प्रभात कुमार ने बताया कि ग्रामीण जो पहले विकास परियोजनाओं का विरोध करने के लिए नक्सलियों के दबाव में आते थे, वहीं गांव वाले अब सड़क, मोबाइल टावर, स्वास्थ्य और स्कूल की मांग कर रहे हैं। हम अगले 18 महीनों के भीतर नारायणपुर को गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) और छोटेबेठिया से जोड़ देंगे। सुरक्षा और विकास के संयुक्त प्रयास से अब अबूझमाड़ का लगभग आधा हिस्सा अब सड़क पहुंच योग्य हो गया है। नारायणपुर से महाराष्ट्र तक सड़क संपर्क नेटवर्क बनाना हमारा लक्ष्य है। उन्हाेने बताया कि अबूझमाड़ में सुरक्षा कैंप स्थापित होने के बाद से यहां छत्तीसगढ़ शासन के बड़े अधिकारी भी पहुंच रहे हैं। छत्तीसगढ़ के पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव निहारिका बारिक ने हाल ही में अबूझमाड़ के पांच गांवों का दौरा किया है। जो इस क्षेत्र में किसी शीर्ष नौकरशाह का पहला दाैरा था। उन्होंने मोटरसाइकिल पर 60 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की और 30 से अधिक विकास कार्याें का निरीक्षण किया। इस दाैरान सचिव निहारिका बारिक ने जमीनी स्तर के विकास कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और गारपा से नारायणपुर के बीच बस सेवा को हरी झंडी दिखाई। उन्हाेने कहा कि यही वजह है कि लगभग 4,000 वर्ग किलोमीटर में फैला अबूझमाड़ का जंगल अब नक्सलियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह नहीं रहा है। पहले नक्सलियों के बड़े नेताओं के लिए यह सुरक्षित पनाहगाह था, अब यहां फोर्स की मौजूदगी से नक्सलियों का टिकना मुश्किल हो रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे