जलेगी मशालः महान क्रांतियोद्धा और गढ़िया कालेश्वर मंदिर के प्रधान पुजारी की स्मृति में रोशन होगा पंचनद
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- Nov 18, 2024
- प्रधान पुजारी कुट्टी बक्स को दी जाएगी मशाल सलामी
औरैया,, 18 नवम्बर (हि. स.)। 1857 के महान क्रांतिवीर गढ़िया कालेश्वर मंदिर के प्रधान पुजारी कुट्टी बक्स को आगामी 26 नवंबर को पंचनट तट पर पूरी श्रद्धा से भव्य मशाल सलामी देने की तैयारी चल रही है। पंचनद का महाकालेश्वर मंदिर स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों की शरणस्थली रहा है। पंचनद महासंगम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के रणबांकुरों के साहसिक कारनामों का गवाह रहा है। गढ़िया कालेश्वर मंदिर के प्रधान पुजारी गुंसाई सूजादेह नसीम कुट्टी बक्स 1857 की स्वतंत्रता संग्राम के नायाब कोहिनूर हैं।
चकरनगर रियासत के राजा कुशल सिंह चौहान, युवराज निरंजन सिंह चौहान और भरेह रियासत के राजा रूप सिंह सेंगर ने 31 मई 1857 को अपने-अपने स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी थी। दोनों राज्यों के शासकों को जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त होने के कारण पंचनद घाटी क्षेत्र ब्रिटिश दासता से पूरी तरह आजाद हो गया था।
कानपुर, झांसी, जालौन और ग्वालियर में क्रांतिकारियों और उनके सैन्यबल पर विजय हासिल करने के बाद ब्रिटिश शासकों ने अपनी बिखरी फौजों को जमाकर अगस्त 1858 में पंचनद घाटी क्षेत्र के क्रांतिवीरों और उनके जनवीर योद्धाओं को पराजित करने, उनका उन्मूलन करने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान चलाया था। गढ़िया कालेश्वर मंदिर के प्रधान पुजारी के पास 150 नियमित सशस्त्र सैनिक और 10 मील के घेरे में निवासरत बंदूकधारी बरकंदाज थे, उनके पास भी वही हथियार थे जो ब्रिटिश सेना के पास थे।
प्रधान पुजारी इस आजादी की जंग में योद्धा संन्यासी बन गये थे। उन्होंने मंदिर को क्रांति का केंद्र बना दिया था जहां बड़ी संख्या में राष्ट्रभक्त सैनिक पड़ाव डाले रहे थे। यहीं से युद्ध का संचालन करते रहे। यह मंदिर चूंकि पांच नदियों के महासंगम पर स्थित तथा घाटी की भौगोलिक स्थितियां क्रांतिकारियों के अनुकूल थी, इस कारण अंग्रेजी फौजें चाहे वे जालौन की तरफ से हमला करें, चाहे वे औरैया की तरफ से बड़ी-बड़ी मर्चेंट बोट्स में फौजें लाकर हमला करें अथवा आगरा-हनुमंतपुरा थल मार्ग से फौजें लाकर हमला करें उन्हें हर बार योद्धा सन्यासी गुसांई कुट्टी बक्स के क्रांतिकारी सैन्यबल का कड़ा सामना करना पड़ता था। उनसे मुकाबला किये बिना अंग्रेजी फौजें पंचनद घाटी क्षेत्र में दाखिल नहीं हो सकती थी।
10 अगस्त 1858 को थल मार्ग से इटावा की अंग्रेजी सेना जिसके पास कई सैकड़ा सैनिक, कई तोपें तथा एक सौ तोपची थे। वहीं ततारपुर-औरैया की तरफ से जलमार्ग से कई मरचेंट बोट्स के द्वारा आई अंग्रेज सेना ने मंदिर पर भीषण हमला किया। योद्धा संन्यासी के नेतृत्व में क्रांतिकारियों और अंग्रेजी सेना के मध्य कई घंटों तक भीषण ऐतिहासिक संग्राम लड़ा गया। दोनों ही तरफ से असंख्य सैनिक हताहत हुए। इस गैर बराबरी के युद्ध में अंग्रेजी सेना ने विजय प्राप्त कर मंदिर पर कब्जा कर लिया।
योद्धा सन्यासी प्रधान पुजारी गुसांई कुट्टी बक्स के बंदी बनाये जाने के बाद इटावा में उनके खिलाफ राजद्रोह, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध लड़ने और ब्रिटिश संपत्ति की लूट का मुकदमा चला। इस विचारण में अभियोजन के पूरे प्रयास करने के बाद भी वह 10 मील की परिधि के अंदर रहने वाले किसी भी व्यक्ति का कथन पुजारी के विरूद्ध बयान दर्ज नहीं करा सकी थी। सभी गवाहों ने पुजारी को निर्दोष बताया। फैसले में जज ने लिखा था कि ‘पुजारी के खिलाफ कोई साक्ष्य उपलब्ध न होने के कारण अदालत उन्हें बरी करने के लिए मजबूर है।
स्वतंत्रता संग्राम नायकों की कीर्ति रक्षा हमारा संकल्पः शाह आलम राना
चंबल संग्रहालय, पंचनद के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राना ने कहा कि जब हम बीहड़ांचल के इतिहास का उत्खनन करते है तो हमें एक से बढ़कर एक सूरमा निकलकर हमारे सामने आते हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें प्रकाश स्तंभ की तरह खड़ा करें और उनसे प्रेरणा लें जिन्होंने आखिरी सांस तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध डटे रहे। अपने लड़ाका पुरखों की कीर्ति रक्षा के लिए पहले भी पंचनद दीप महापर्व में औरैया, इटावा और जालौन तट पर बंसरी गांव के महान लड़ाका जीता चमार की स्मृति में दो दिवसीय सवा लाख दीप जलाकर श्रद्धासुमन अर्पित किया गया था। तो वहीं इटावा को स्वतंत्र कराने वाले महान योद्धा सूबेदार मेजर अमानत अली की स्मृति में 10 फिट चौड़ा और 151 फिट लंबा तिरंगा झंडा फहराकर पंचनद सलामी दी गई थी। इस बार योद्धा सन्यासी गुसांई कुट्टी बक्स के नेतृत्व में लड़े गये संग्राम की 166वी सालगिरह और भारतीय संविधान दिवस पर समूची श्रद्धाभावना के साथ मशाल सलामी दी जा रही है।
दरअसल स्वतंत्रता मिलने के इतने वर्षों के बाद भी ऐसे क्रांतिवीरों पर न कोई ठोस काम हुआ और न ही उनकी स्मृतियों को जिन्दा रखने का प्रयास हुआ। हमें उम्मीद हैं अपने हिस्से की यह मशाल आप स्वयं अपने हाथों से प्रज्वलित करेंगे। इस मशाल को मजबूत हाथों से थामना आपकी ऐतिहासिक जवाबदेही है।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील कुमार