पलवल :ब्रज का हुरंगा बना विश्व प्रसिद्ध उत्सव,बरसाने से शुरू होकर सौंध-बंचारी तक चलेगा

पलवल, 14 मार्च (हि.स.)। ब्रज क्षेत्र का प्रसिद्ध होली उत्सव हुरंगा इस वर्ष भी धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह उत्सव 8 मार्च को बरसाने की लट्ठमार होली से शुरू हुआ है। यह 15 मार्च तक सौंध-बंचारी तक चलेगा। नौ मार्च को नंदगांव में होली का आयोजन हुआ। इसके बाद मथुरा, वृंदावन और गोकुल समेत ब्रज के अन्य प्रमुख स्थानों में हुरंगा की धूम मची है। 13 मार्च को होलिका दहन होगा, 14 मार्च को हुरंगा मनाया जा रहा है। 15 मार्च को दिन में बंचारी और सौंध गांव की चौपालों में रंग-गुलाल का हुरंगा होगा। रात में बंचारी गांव में चौपाइयों का विशेष कार्यक्रम होगा।

बंचारी में सदियों पुराना हुरंगा बलदाऊ जी मंदिर में पूजा-अर्चना से प्रारंभ होता है। हुरियारे पिचकारियों से रंग बरसाते हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हुए गलियों से होकर पुराने रोड तक जाते हैं। यहां ब्रज क्षेत्र की विभिन्न पार्टियां भजन और फाग गाती हैं। सौंध गांव के सरपंच तुहीराम के अनुसार गांव में होने वाले हुरंगा के लिए मथुरा से हर्बल रंग और गुलाल मंगवाया जाता है। गांव में कुल 18 चौपालें हैं, जिनमें से 14 चौपालों पर रंग-गुलाल का उत्सव मनाया जाता है। सौंध गांव में हुरंगा की शुरुआत सुबह 10 बजे गांव की पक्की बड़ी चौपाल से होती है।

इस प्रसिद्ध उत्सव को देखने के लिए न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते हैं। ब्रज की होली की यह विशेष परंपरा सांस्कृतिक विरासत का अनूठा उदाहरण है। एक चौपाल पर दस किलो गुलाल व पांच किलो रंग की खपत होती है। जिसके लिए मथुरा से हरबल के रंग गुलाल लेने के लिए एक-दो दिन में ग्राम पंचायत की टीम मथुरा जाएगी।

52 पालों के पंच बोले-हुरंगा का अंतिम पड़ा

सौंध गांव के रहने वाले 52 पालों के पंच अरुण जेलदार ने शुक्रवार को बताया कि सौंध का हुरंगा ब्रज में चलने वाले हुरंगा का अंतिम पड़ाव होता है। सौंध गांव में हुरंगा (फुलडोर) के दिन गांव की 14 चौपालों पर रंग बरसाया जाता है। प्रत्येक चौपाल पर 10 किलो सूखा हरबल गुलाल व पांच किलो रंग रखा जाता है। इसके अलावा चौपालों पर रखे बड़े-बड़े पानी के टबों में कई-कई किलो रंग मिलाकर उसे पिचकारियों से लोगों पर डाला जाता है। ब्रज के बंचारी गांव के पूर्व सरपंच भूप राम सोरौत ने बताया कि सदियों से फूलडोर (हुरंगा) का मेला मनता आ रहा है, बुजुर्ग बताते है कि श्रीकृष्ण भगवान के बड़े भाई बलदाऊ जी यहां आए थे, उनसे ही इसका जुड़ाव होने के चलते उसी समय से यहां रंगों का यह पर्व मनाया जाता है। रात के समय गांव में चौपाइयों का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से लोग पहुंचते है।

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हिन्दुस्थान समाचार / गुरुदत्त गर्ग

   

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