मायावती के जन्मदिन आते ही कभी नीले झंडों से पट जाती थी सड़कें, अब जोश हो गया ठंडा 

लखनऊ, 15 जनवरी (हि.स.)। कभी जमाना था, जब नए साल के जश्न के साथ ही बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन की तैयारियां शुरू हो जाती थी। जनवरी के प्रथम सप्ताह में ही पूरा प्रदेश बसपा के बैनर-पोस्टर से पाट दिया जाता था, लेकिन आज सड़कें सूनी हैं। कार्यकर्ताओं के जोश फीकें हैं। बसपा में नेताओं का भी अकाल सा पड़ गया है।

15 जनवरी को बसपा प्रमुख मायावती का जन्मदिन है। प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री का शपथ ले चुकी हैं। मायावती की हनक से सब वाकिफ हैं। अधिकारियों के बीच अपनी हनक कायम करने वाली मायावती ने तीन जून 1995 को जब प्रथम दलित महिला के रूप में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो पूरे प्रदेश में नीला झंडा दिखने लगा। हालांकि मुख्यमंत्री पद भाजपा से गठबंधन करके मिला था। 18 अक्टूबर 1995 को उनकी सरकार गिर गयी। इसके बाद वे 21 मार्च 1997 को दूसरी बार, तीन मई 2002 को तीसरी बार और 13 मई 2007 को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लीं। वे 6 मार्च 2012 तक मुख्यमंत्री रहीं। 2007 में मायावती ने पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी, लेकिन इसी के बाद बसपा का अवसान काल शुरू हो गया।

2012 में सपा ने सरकार बनायी। इसके बाद 2017 से भाजपा है। कभी प्रदेश की मुख्य राजनीतिक पार्टी की भूमिका में रही बसपा के आज पूरे प्रदेश में मात्र एक विधायक हैं। लोकसभा में एक भी सदस्य नहीं हैं। आज स्थिति यह है कि बसपा में मायावती को छोड़कर कोई भी मुख्य चेहरा बसपा में नहीं है। मायावती के जन्मदिन के दिन भी लखनऊ में भी नीला झंडा देखने को नहीं मिल रहा है। कार्यकर्ता भी धीरे-धीरे मायूस हो गये हैं।

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्रा का कहना है कि अवसान काल तो आना निश्चित है, लेकिन बसपा प्रमुख द्वारा अपनी समाज में बदलाव के अनुसार खुद को न बदलना इस अवसान का कारण है। अब शायद ही वे कभी प्रमुखता से आ सकेंगी। कभी ब्राह्मण-दलित का गठजोड़ से पूर्ण बहुमत पाने वाली मायावती अब दलितों के बीच भी प्रमुख नहीं रह गयी हैं। इसका कारण रहा कि वे युवाओं के तेवर को समझ नहीं पायीं। रोड पर सरकार का विरोध कभी नहीं किया, जो युवा वर्ग का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र होता है।

हिन्दुस्थान समाचार / उपेन्द्र नाथ राय

   

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