भगवान मुरुगन की पूजा के लिए उमड़ रहे श्रद्धालु

देहरादून, 30 मार्च (हि.स.)। उत्तर भारत में स्थित एक मात्र कार्तिक स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। यहां लगातार तमिलनाडु, कर्नाटक और दक्षिण के अन्य राज्यों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

उत्तराखंड के चमोली व रुद्रप्रयाग जिले के 360 गांव के आराध्य कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तर भारत में स्थित एक मात्र मंदिर है। क्रौंच पर्वत पर समुद्र तल से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पर कार्तिक स्वामी मंदिर अत्यंत सुंदर नजर आता है। मंदिर से चारो ओर हिमालय के दर्शन तो सम्मोहन सा असर करते हैं यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के कनकचौंरी से करीब साढ़े चार किमी पैदल दूरी पर स्थित है। वनों से घिरे इस क्षेत्र में मंद-मंद बहती ठंडी हवाओं में बिखरी खुशबू से ऐसा लगता है कि कहीं देवता यज्ञ में आहुतियां डाल रहे हैं। मात्र यही नहीं बल्कि चट्टानों पर सैकड़ों छोटे-छोटे जलकुंड मौजूद हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि यह प्राचीन ओखलियां हैं, जिनमें जल बारामास भरा रहता है।

मंदिर में हर वर्ष जून माह में ग्यारह दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान होता है। वहीं देव दीपावली मनाने की यहां विशेष परंपरा है। बीते दिसम्बर से अब तक यहां 30 हजार से अधिक श्रद्धालु और पर्यटन पहुंच चुके हैं। चार बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री के कपाट बंद होने के बाद यात्रा समाप्त मानी जाती है लेकिन कार्तिक स्वामी मंदिर की यात्रा शीतकाल में भी जारी रहती है। बीते वर्ष 165 श्रद्धालुओं ने 108 बालपुरी शंख पूजन और हवन का आयोजन किया था, जिसमें उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज भी शामिल हुए थे।

वन विभाग ने स्थानीय ग्रामीणों के साथ मिलकर कनकचौंरी से मंदिर तक पूरे क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए कवायद शुरू कर दी है। पैदल मार्ग व मंदिर की देखरेख, साफ-सफाई और आमदनी अर्जित करने के लिए कार्तिकेय-कनकचौंरी पर्यावरण विकास समिति का गठन किया गया है। कनकचौंरी-कार्तिक स्वामी मंदिर तक पर्यटन विभाग ने 10 शौचालय बनाए हैं। साथ ही टीएचडीसी पीपलकोटी की मदद से यहां प्रकाश व्यवस्था के इंतजाम किए गए हैं। ईडीसी द्वारा यहां प्रत्येक 100-100 मीटर की दूरी पर कूड़ेदान रखे जा रहे हैं। आमदनी बढ़ने पर आने वाले समय में कार्तिकेय-कनकचौरी पर्यावरण विकास समिति यात्री सुविधाओं में और इजाफा करेगी।

कार्तिक स्वामी पहुंचने वाले यात्री व पर्यटकों से 10 रुपये से 50 रुपये तक शुल्क लिया जा रहा है। मंदिर के हक-हकूक से जुड़े गांवों को शुल्क से मुक्त रखा गया है। अन्य जिलों से आने वाले यात्रियों से 25 रुपये व बाहरी यात्रियों से 50 रुपये शुल्क लिया जा रहा है। उप प्रभागीय वनाधिकारी डीएस पुंडरी बताते हैं कि पैदल ट्रैक पर साफ-सफाई के लिए दो कर्मचारी तैनात किए गए हैं। वन विभाग सहित अन्य संस्थाओं का सहयोग मिल रहा है, जिससे कनकचौंरी से मंदिर तक सुविधाएं जुटाने में मदद मिल रही है।

हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pokhriyal

   

सम्बंधित खबर