लोटा भंटा मेले में वरुणा नदी में डुबकी लगा श्रद्धालुओं ने रामेश्वर महादेव को चढ़ाया बाटी-चोखा
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- Nov 21, 2024
—वरुणा के कछार में जगह-जगह गोहरी के अहरा पर दाल-चावल और बाटी-चोखा श्रद्धालुओं ने बनाया,मेले में सुरक्षा का व्यापक प्रबंध
वाराणसी,21 नवम्बर (हि.स.)। उत्सव प्रिय काशी नगरी में मार्गशीर्ष (अगहन) महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि गुरुवार को लोगों ने जंसा रामेश्वर के प्रसिद्ध-लाेटाभंटा मेले में रामेश्वर महादेव के दरबार में हाजिरी लगाने के बाद जमकर मौजमस्ती की। वरुणा नदी के कछार में लगभग दस किमी की दूरी में फैले मेला क्षेत्र में भोर से ही आस्थावानों की भीड़ उमड़ने लगी और श्रद्धालु वरुणा नदी में पुण्य की डुबकी पूरे दिन लगाते रहे। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने रामेश्वर महादेव का जलाभिषेक किया और भगवान शिव को बाटी-चोखा का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण किया। मेले में सुरक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया है। सात वार नौ त्योहार के फक्कड़ी जीवन को जीने वाली उत्सवधर्मी काशी और आसपास जिलों के नागरिक मेला क्षेत्र में स्थित वरुणा के कछार में जगह-जगह गोहरी के अहरा पर दाल-चावल और बाटी-चोखा बनाने में जुटे रहे। बाटी-चोखा बनाने के बाद इसे रामेश्वर महादेव को जाकर प्रसाद स्वरूप चढ़ाया। भोग लगाने के बाद श्रद्धालुओं ने बाटी-चोखा को परिजनों और दोस्तों के साथ पूरे श्रद्धाभाव से ग्रहण किया। मेला परिसर में गोहरी, अहरा के चलते हर तरफ धुआं नजर आ रहा था। भोजन के बाद श्रद्धालुओं ने मेले में मौज-मस्ती के साथ घूम कर जमकर खरीदारी की। मेले में झूला, चरखा, मौत का कुआं, सर्कस, जादूगर आदि आकर्षण का केन्द्र बना रहा। मेला क्षेत्र में जंसा, हरहुआ, बड़ागांव, मिर्जामुराद, कपसेठी, लोहता, चोलापुर, चौबेपुर, रामेश्वर की पुलिस टीम लगातार गश्त करती रहीं।
गौरतलब हो कि सनातनी पंचक्रोशी परिक्रमा में रामेश्वर तीर्थ धाम का विशेष महत्व हैं। मान्यता है कि भगवान राम ने लंकापति रावण के वध के बाद प्रायश्चित के लिए यहां रामेश्वर में प्रवास किया था। यहां भगवान राम ने वरुणा नदी से एक मुठ्ठी रेत लेकर शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान शिव व राम के प्रथम मिलन होने के कारण यह रामेश्वर धाम नाम से जाना जाता है। एक और मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व एक युवा दम्पति ने पुत्र व कल्याण की कामना से अगहन मास के कृष्ण पक्ष के छठे दिन यहां रात्रि विश्राम कर भगवान राम का स्मरण किया, तो उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इसी विश्वास के चलते नि:सन्तान दम्पति भी यहां दरबार में हाजिरी लगाते हैं। लोग अपने परिजनों के साथ भोजन तैयार कर भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाकर स्वयं ग्रहण कर मेला का आनन्द उठाते हैं। यहां धाम में आदिशक्ति मां तुलजा-दुर्गा, राधा-कृष्ण, लक्ष्मणेश्वर, भरतेश्वर, शत्रुघ्नेश्वर, दत्तात्रेय, राम-लक्ष्मण, जानकी सहित कई देवी-देवताओं का भी विग्रह हैं। लोक मान्यता है कि महाभारत काल में पांडव भी यहां आये थे। मंदिर के पुजारी अनूप तिवारी के अनुसार देश के कोने-कोने से संतान रत्न की प्राप्ति की कामना लिए लोग लोटा-भंटा मेले में आते हैं। भगवान विष्णु के दाहिने चरण के अंगूठे से निकली आदि गंगा मां वरुणा नदी में भक्त डुबकी लगाते हैं। भोलेनाथ को बाटी-चोखा का प्रसाद चढ़ाकर उसे खुद ग्रहण करते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी