देवउठनी एकादशी मंगलवार को, शुरू होंगे मांगलिक कार्य

जयपुर, 11 नवंबर (हि.स.)। कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी मंगलवार को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। मंगलवार को देवउठनी एकादशी पर सूरज उगने से पहले ब्रह्म मुहूर्त में शंख बजाकर भगवान विष्णु को जगाया जाएगा। भगवान विष्णु के जागते ही प्रदेश भर में मांगलिक कार्य शुरू हो जाऐंगे। मंगलवार को देव प्रबोधिनी एकादशी पर दिनभर महापूजा और भगवान का श्रंगार होगा। शाम को भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से तुलसी विवाह होगा और दीपदान किया जाएगा। इस दिन से सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, मुंडन, गृह-प्रवेश, उपनयन संस्कार इत्यादि मांगलिक कार्य शुरू हो जाएगे।

ज्योतिषाचार्य पंडित बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि विष्णु भगवान ने शंखासुर दैत्य को मारा था और उसके बाद चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए। चार महीने पूरे होने के बाद देवउठनी एकादशी भगवान विष्णु जागते है और दोबारा से सृष्टि चलाने की जिम्मेदारी संभालते है। इसलिए भगवान विष्णु के जागते ही फिर से मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है। इसलिए देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।

ज्योतिषाचार्य पंडित बनवारी लाल शर्मा के बताए अनुसार नवंबर माह में 12, 13, 16, 18, 22, 23, 25, 26, 28 और 29 नवम्बर को विवाह के लिए शुद्ध सावे होंगे। विवाह के अलावा सगाई, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश सहित अन्य मांगलिक आयोजन भी देवउठनी एकादशी से प्रारंभ हो जाएंगे। उधर, मंदिरों में शंख, घंटे, घड़ियाल की मधुर स्वर लहरियों के साथ ठाकुर जी को जगाया जाएगा।

तुलसी विवाह की है पंरपरा

देव प्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जागते ही तुलसी विवाह किया जाता है। साथ ही भगवान की आरती के साथ उन्हे सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु को भोग के साथ तुलसी दल चढ़ाना अनिर्वाय है। भगवान तुलसी के बिना भोग स्वीकार नहीं करते । देवउठनी एकादशी पर्व पर तुलसी विवाह के अलावा माता लक्ष्मी की पूजा करने का भी विशेष महत्व है। इस दिन तीर्थ स्नान , दान पुण्य करने के साथ ही दीपदान करने की भी परंपरा है। बताया जाता है कि इस दिन धर्म-कर्म करने से कभी नहीं खत्म होने वाला पुण्य मिलता है। पंचांग तिथि के अनुसार कार्तिक माह में आगामी दिनों में त्रयोदशी ,बैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर्व भी मनाया जाएगा। इन तीनों तिथियों में दीपदान करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी की विशेष कृपा मिलती है।

देवउठनी एकादशी व्रत और शुभ योग

पंडित शर्मा ने बताया कि एकादशी व्रत के दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है, उन्हें पूजा पाठ के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इस बार देवउठनी एकादशी व्रत छह शुभ योगों में रखा जाएगा। मान्यता है कि इन योगों में पूजा अर्चना और शुभ काम करने से मनोकामना पूरी हो जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि योग में किसी भी प्रकार के नए कार्य जैसे व्यापार की शुरुआत करना, शादी विवाह करना, नई नौकरी की शुरुआत करना, पूजा.पाठ करना शुभ फल देने वाले होते हैं। ऐसा माना जाता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कोई भी कार्य निश्चित रूप से सफल होता है। यह योग देव उठनी एकादशी 12 नवंबर की सुबह 7 बजकर 52 बजे से लेकर अगले दिन 5 बजकर 40 बजे तक रहेगा। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, इन सभी शुभ मुहूर्त में पूजा-पाठ, दान इत्यादि कर्म करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। इस दिन सावे शुरू होने के साथ ही बड़ी संख्या में शादियां होगी। प्रदेशभर में विशेष आयोजन होंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश

   

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