दीघा जगन्नाथ मंदिर में राज्य सरकार की भूमिका पर कलकत्ता उच्च न्यायालय में जनहित याचिका

कोलकाता, 13 मई (हि. स.)। पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर ज़िले के दीघा में हाल ही में उद्घाटित भगवान जगन्नाथ मंदिर में राज्य सरकार की भूमिका को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है। यह मंदिर ओडिशा के पुरी स्थित प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ धाम मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है।

यह याचिका कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील और भाजपा नेता कौस्तव बागची ने दायर की है। याचिका में उन्होंने राज्य सरकार की भागीदारी को संविधान विरोधी बताया है। साथ ही उन्होंने अदालत से आग्रह किया है कि इस मामले की पहली सुनवाई 19 मई से पहले कराई जाए।

याचिका में सबसे बड़ा सवाल यह उठाया गया है कि पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हिडको), जो इस मंदिर निर्माण की कार्यकारी एजेंसी है, उसकी आधिकारिक पता मंदिर ट्रस्ट का पता कैसे बताया जा सकता है?

कौस्तव बागची ने यह भी आपत्ति जताई कि मंदिर ट्रस्ट को दी गई दान राशि पर कर (टैक्स) छूट की घोषणा कैसे की गई। उन्होंने सवाल किया कि जब कानूनी रूप से कोई राज्य सरकार धार्मिक स्थल के निर्माण में प्रत्यक्ष भूमिका नहीं निभा सकती, तो कर में छूट की घोषणा कैसे की गई?

याचिका में यह भी कहा गया है कि दीघा जगन्नाथ मंदिर के निर्माण में राज्य सरकार द्वारा लगभग 250 करोड़ की राशि खर्च की गई है। उन्होंने इसे संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के खिलाफ बताया और पूछा कि किसी धार्मिक ढांचे के लिए सार्वजनिक धन कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है।

30 अप्रैल को मंदिर के उद्घाटन के बाद से यह मुद्दा लगातार विवादों में है। पहला विवाद यह सामने आया था कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के लिए तैयार की गई लकड़ी के बचे टुकड़ों का उपयोग दीघा मंदिर की मूर्तियों को बनाने में किया गया। दूसरा बड़ा विवाद धाम शब्द के इस्तेमाल को लेकर है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, केवल बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका और पुरी जैसे चार प्रमुख तीर्थ स्थलों को ही धाम कहा जा सकता है। ऐसे में दीघा के इस मंदिर को धाम कहना कई धार्मिक संगठनों को आपत्तिजनक लग रहा है।

अब अदालत यह तय करेगी कि राज्य सरकार की भूमिका और खर्च की गई राशि संविधान और धर्मनिरपेक्षता की भावना के अनुरूप है या नहीं।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

   

सम्बंधित खबर