करवाचौथ: 'गौरी' दे रही उत्तराखंड की पारम्परिक आभूषणों को बढ़ावा

हंसुली संस्था की संस्थापक गौरी बलोदी।

देहरादून, 19 अक्टूबर (हि.स.)। करवाचौथ का त्योहार महिलाओं के लिए बेहद ही खास होता है। इस मौके पर महिलाओं का समूह हंसुली संस्था ने राज्य के पारम्परिक आभूषणों को पुनर्जीवित करने के लिए शनिवार को सहस्त्रधारा रोड स्थित एक सभागार में पारम्परिक आभूषणों की प्रदर्शनी लगाई। इसमें पारम्परिक वेशभूषा में सजी महिलाएं जहां ज्वैलरी बनाते हुए इनके बारे में बता रही थीं, वहीं बीच बीच में पारम्परिक गाने भी गा रही थीं।

हंसुली की संस्थापक गौरी बलोदी ने कहा कि उन्हें बचपन से ही अपनी संस्कृति से बेहद लगाव था। यही वजह थी कि जब उनकी मां पूजा तोमर ने पहाड़ी रसोई शुरू की तो वहां पहाड़ी व्यंजन बनाने से लेकर परोसने तक का काम गौरी बेहद ही लगाव से करती थी। गौरी ने कहा कि उसको डर था कि कहीं शादी के बाद वो इन सबसे दूर न हो जाए लेकिन उसको पति भी ऐसा मिल गया जो खुद उत्तराखंड की संस्कृति से बेहद लगाव रखते हैं। पति हेमंत का साथ मिला तो दोनों ने मिलकर अपने पारम्परिक आभूषणों को पुनर्जीवित करने के लिए काम किया। घंटों इस काम को देने के बाद उन्होंने इसकी मार्केटिंग पर फोकस किया और लोगो ने भी तुरंत अपना प्यार देना शुरू कर दिया।

गौरी ने कहा कि विलुप्त होते इन आभूषणों को हम फिर से महिलाओं के बीच जीवित करने के लिए अभियान चला रहे हैं। पहाड़ के ही नहीं अन्य जगहों के लोगों ने भी ये पारम्परिक ज्वैलरी खरीदी। महिलाओं का समूह गुलोबन्द, चन्द्रहार, तिमानिया, तुंगल, पोची, हंसुली, नथुली, धगुली आदि आभूषण बना रहा है, जिससे उत्तराखंड सहित देश और विदेश में भी प्रचलित करना चाहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ी भी अपनी संस्कृति से रूबरू हो सके। इस दौरान संस्था ने चन्द्रहार और तिमानिया आभूषणों के साथ त्योहार को मनाने की अपील की।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश कुमार

   

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